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________________ ११४ अनुयोगद्वार सूत्र अतः अनुयोग द्वार सूत्र में जहाँ-जहाँ भी 'भंते' और 'गोयमा' युक्त संबोधनक्रम प्राप्त हों, वहाँ-वहाँ यह स्पष्टीकरण ज्ञातव्य है। (१०३) अनौपनिधिकी क्षेत्रानुपूर्वी से किं तं संगहस्स अणोवणिहिया खेत्ताणुपुव्वी? संगहस्स अणोवणिहिया खेत्ताणुपुव्वी पंचविहा पण्णत्ता। तंजहा - अट्ठपयपरूवणया १ भंगसमुक्कित्तणया २ भंगोवदंसणया ३ समोयारे ४ अणुगमे ५। भावार्थ - संग्रहनयानुसार अनौपनिधिकी क्षेत्रानुपूर्वी किस प्रकार की है? . संग्रहनय सम्मत अनौपनिधिकी क्षेत्रानुपूर्वी पांच प्रकार की कही गई है - १. अर्थपद प्ररूपणता २. भंग समुत्कीर्तनता ३. भंगोपदर्शनता ४. समवतार ५. अनुगम। से किं तं संगहस्स अट्ठपयपरूवणया? संगहस्स अट्ठपयपरूवणया - तिपएसोगाढा आणुपव्वी, चउप्पएसोगाढा आणुपुव्वी जाव दसपएसोगाढा आणुपुव्वी, संखिजपएसोगाढा आणुपुव्वी, असंखिजपएसोगाढा आणुपुव्वी, एगपएसोगाढा अणाणुपुव्वी, दुपएसोगाढा अवत्तव्वए। सेत्तं संगहस्स अट्ठपयपरूवणया। एयाए णं संगहस्स अट्ठपयपरूवणयाए किं पओयणं?० संगहस्स अट्ठपयपरूवणयाए संगहस्स भंगसमुक्कित्तणया कज्जइ। भावार्थ - संग्रहनय सम्मत अर्थपद प्ररूपणता का क्या स्वरूप है? संग्रहनय सम्मत अर्थपद प्ररूपणता त्रिप्रदेशावगाह युक्त आनुपूर्वी, चतुःप्रदेशावगाह युक्त आनुपूर्वी यावत् दस प्रदेशावगाह युक्त आनुपूर्वी, संख्यात प्रदेशावगाह युक्त आनुपूर्वी, असंख्यात प्रदेशावगाह युक्त आनुपूर्वी, एक प्रदेशावगाह युक्त अनानुपूर्वी, द्विप्रदेशावगाह युक्त अवक्तव्य रूप है। यह संग्रहनय सम्मत अर्थ पद प्ररूपणा का निरूपण है। इस संग्रहनय सम्मत अर्थपद प्ररूपणता का क्या प्रयोजन है? संग्रहनय सम्मत अर्थपद प्ररूपणता द्वारा संग्रहनय सम्मत भंग समुत्कीर्तनता की जाती है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004183
Book TitleAnuyogdwar Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size9 MB
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