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________________ समवाय७ ३१ wwwwwwwwwwww w wwwwwwwwwAHARAMITAMARHATTINAMITHATANAMAHANIYATION भय - धन की रक्षा के लिए चोर आदि से डरना। अकस्माद् भय - बिना किसी बाह्य कारण के स्वकल्पना से अचानक डरना। आजीविका भय - आजीविका के विनाश का भय अथवा रोगादि का भय। मरण भय - मरने से डरना। अश्लोक भय - अपकीर्ति से डरना। सात समुद्घात कहे गये हैं यथा - वेदना समुद्घात, कषाय समुद्घात, मारणान्तिक समुद्घात, वैक्रिय समुद्घात, तैजस् समुद्घात, आहारक समुद्घात, केवली समुद्घात। श्रमण भगवान् महावीर स्वामी सात हाथ ऊँचे थे अर्थात् श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के शरीर की ऊंचाई सात हाथ की थी। इस जम्बूद्वीप में सात वर्षधर यानी वासों (क्षेत्रों) का विभाग करने वाले पर्वत कहे गये हैं। यथा - चुल्लहिमवान्, महा हिमवान्, निषध, नीलवान्, रूपी या रुक्मी, शिखरी, मन्दर। इस जम्बूद्वीप में सात वास यानी मनुष्यों के रहने के स्थान कहे गये हैं। यथा - भरत, हैमवत, हरिवर्ष, महाविदेह, रम्यक, ऐरण्यवत या हैरण्यवत, ऐरवत। क्षीणमोहनीय भगवान् यानी बारहवें गुणस्थानवी जीव मोहनीय कर्म के सिवाय सात कर्मों को वेदते हैं। मघा नक्षत्र सात तारों वाला कहा गया है। कृत्तिका, रोहिणी, मृगशिर, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य और अश्लेषा ये सात नक्षत्र अथवा अभिजित आदि सात नक्षत्र पूर्व द्वार वाले कहे गये हैं। पूर्व दिशा में जाने वाले के लिए ये मंगलकारी हैं। मघा, पूर्वाफाल्गुनी, उत्तराफाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाति और विशाखा ये सात नक्षत्र दक्षिण द्वार वाले कहे गये हैं। दक्षिण दिशा में जाने वाले के लिए ये मङ्गलकारी हैं। अनुराधा, ज्येष्ठा, मूला, पूर्वाषाढा, उत्तराषाढा, अभिजित और श्रवण ये सात नक्षत्र पश्चिम द्वार वाले कहे गये हैं। पश्चिम दिशा में जाने वाले के लिए मङ्गलकारी हैं। धनिष्ठा, शतभिषक, पूर्वभाद्रपदा, उत्तरभाद्रपदा, रेवती, अश्विनी और भरणी ये सात नक्षत्र उत्तर द्वार वाले कहे गये हैं। उत्तर दिशा में जाने वाले के लिए मङ्गलकारी हैं। इस रत्नप्रभा नामक प्रथम पृथ्वी में कितनेक नैरयिकों की स्थिति सात पल्योपम कही गई है। तीसरी नरक में नैरयिकों की उत्कृष्ट स्थिति सात सागरोपम कही गई है। चौथी पंकप्रभा नामक नरक में नैरयिकों की जघन्य स्थिति सात सागरोपम कही गई है। असुरकुमार देवों में कितनेक देवों की स्थिति सात पल्योपम कही गई है। सौधर्म और ईशान नामक पहले और दूसरे देवलोक में कितनेक देवों की स्थिति सात पल्योपम कही गई है। सनत् कुमार नामक तीसरे देवलोक मे कितनेक देवों की उत्कृष्ट स्थिति सात सागरोपम कही गई है। माहेन्द्र नामक चौथे देवलोक में देवों की उत्कृष्ट स्थिति सात सागरोपम से कुछ अधिक कही गई है। ब्रह्मलोक नामक पांचवें देवलोक में कितनेक देवों की स्थिति सात सागरोपम से कुछ अधिक कही गई है। पांचवें देवलोक के अन्तर्गत सम, समप्रभ, महाप्रभ, प्रभास, भासुर, विमल, कञ्चनकूट, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004182
Book TitleSamvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages458
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_samvayang
File Size10 MB
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