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________________ समवायांग सू महाहिमवंते णिसढे णीलवंते रुप्पी सिहरी मंदरे । इहेव जंबूद्दीवे दीवे सत्त वासा पण्णत्ता तंजहा - भरहे हेमवए हरिवासे महाविदेहे रम्मए एरण्णवए एरवए । खीणमोहे णं भगवया मोहणिज्ज वज्जाओ सत्त कम्मपयडीओ वेएइ । महा णक्खत्ते सत्त तारे पण्णत्ते । कत्तियाइया सत्त णक्खत्ता पुव्वदारिया पण्णत्ता (अभियाइया सत्त णक्खत्ता)। महाझ्या सत्त णक्खत्ता दाहिण-दारिया पण्णत्ता । अणुराहाझ्या सत्त क्खत्ता अवरदारिया पण्णत्ता । धणिट्ठाइया सत्त णक्खत्ता उत्तरदारिया पण्णत्ता । इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं णेरइयाणं सत्त पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता । तच्चाए णं पुढवीए णेरइयाणं उक्कोसेणं सत्त सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता । चउत्थीए णं पुढवीए णेरइयाणं जहण्णेणं सत्त सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता । असुरकुमाराणं देवाणं अत्थेगइयाणं सत्त पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता | सोहम्मीसाणेसु कप्पे अत्थेगइयाणं देवाणं सत्त पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता । सणकुमारे कप्पे अत्थेगइयाणं देवाणं उक्कोसेणं सत्त सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता । माहिंदे कप्पे देवाणं उक्कोसेणं साइरेगाइं सत्त सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता । बंभलोए कप्पे अत्थेगइयाणं देवाणं सत्त साहिया सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता । जे देवा समं समप्पभं महापभं भासं भासुरं विमलं कंचणकूडं सणकुमारवडिंसगं विमाणं देवत्ताए उववण्णा तेसिणं देवा उक्कोसेणं सत्त सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता । ते णं देवा सत्तण्हं अद्धमासाणं ( सत्तहिं अद्धमासेहिं ) आणमंति वा पाणमंति वा ऊससंति वा णीससंति वा । तेसिणं देवाणं सत्तर्हि वाससहस्सेहिं आहारट्टे समुप्पज्जइ । संतेगइया भवसिद्धिया जीवा जे णं सत्तहिं भवग्गहणेहिं सिज्झिस्संति बुज्झिस्संति जाव सव्वदुक्खाणमंतं करिस्सति ॥ सूत्र ७ ॥ अकस्मात् भय, असिलोग कठिन शब्दार्थ - भय ट्ठाणा भय स्थान, अकम्हा भए भए - अश्लोक भय, वासहर पव्वया वर्षधर पर्वत, खीणमोहे क्षीण मोहनीय, सत्त कम्मपयडीओ - सात कर्म प्रकृतियों को, बंभलोए कप्पे - ब्रह्मलोक नामक पांचवे देवलोक में । भावार्थ - सात भय स्थान कहे गये हैं प्राणी से डरना इहलोकभय कहलाता है। जैसे का तिर्यञ्च से और नैरयिक का नैरयिक से दूसरी जाति वाले से डरना । जैसे मनुष्य का तिर्यञ्च या देव अथवा तिर्यञ्च का देव या मनुष्य से डरना । आदान यथा इहलोक भय - अपनी ही जाति के मनुष्य का मनुष्य से, देव का देव से, तिर्यञ्च डरना । परलोक भय ३० Jain Education International - - For Personal & Private Use Only - PPPPPPPPEF www.jainelibrary.org
SR No.004182
Book TitleSamvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages458
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_samvayang
File Size10 MB
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