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________________ ऐरवत क्षेत्र में भावी चक्रवती, बलदेव, वासुदेव पद विमल उत्तरे अरहा, अरहा य महाबले । देवाणंदे य अरहा, आगमिस्साण होक्खड़ ॥ ९६ ॥ एए वृत्ता चउव्वीसं, एरवयम्मि केवली । आगमिस्साण होक्खंति, धम्मतित्थस्स देगा ।। ९७ ।। भावार्थ - इस जम्बूद्वीप के ऐरवत क्षेत्र में आगामी उत्सर्पिणी काल में चौबीस तीर्थङ्कर होंगे, उनके नाम इस प्रकार होंगे - १. सुमंगल, २. सिद्धार्थ अथवा अर्थसिद्ध, ३. निर्वाण, ४. महायश, ५. धर्मध्वज, ६. श्रीचन्द्र, ७ पुष्पकेतु, ८. महाचन्द्र, ९ श्रुतसागर, १०. सिद्धार्थ अथवा अर्थसिद्ध, ११. पूर्णघोष, १२. महाघोष, १३. सत्यसेन, १४. सूर्यसेन, १५. महासेन, १६. सर्वानन्द, १७. देवपुत्र, १८. सुव्रत सुपार्श्व, १९. सुकौशल, २०. अनन्त विजय, २१. विमल, २२. उत्तर, २३. महाबल, २४. देवानन्द, ये धर्मतीर्थ की स्थापना करने वाले और धर्मोपदेशक ऐरवत क्षेत्र में आगामी उत्सर्पिणी काल में तीर्थङ्कर होवेंगे ।। ९१-९७ ॥ ऐरवत क्षेत्र में भावी चक्रवती, बलदेव, वासुदेव पद जंबूद्दीवे णं दीवे एरवए वासे आगमिस्साए उस्सप्पिणीए बारस चक्कवट्टिणो भविस्संति, बारस चक्कवट्टि पियरो भविस्संति, बारस चक्कवट्टि मायरो भविस्संति, बारस इत्थी रयणा भविस्संति । णव बलदेव वासुदेव पियरो भविस्संति, णव वासुदेव मायरो भविस्संति, णव बलदेव मायरो भविस्संति, णव दसार मंडला भविस्संति, उत्तरपुरिसा, मज्झिमपुरिसा, पहाणपुरिसा जाव दुवे दुवे राम केसवा भायरो भविस्संति, णव पडिसत्तू भविस्संति, णव पुव्वभव णामधेज्जा, णव धम्मायरिया, णव णियाण भूमीओ, णव णियाण कारणा भविस्संति, आयाए एरवए आगमिस्साए भाणियव्वा, एवं दोसु वि आगमिस्साए भाणियव्वा ।। भावार्थ- ऐरवत क्षेत्र में आगामी उत्सर्पिणी काल में बारह चक्रवर्ती होंगे। चक्रवर्तियों के बारह पिता होंगे, बारह माताएं होंगी, बारह स्त्री रत्न होंगे। बलदेव और वासुदेवों के नौ पिता होंगे, वासुदेवों की नौ माताएं होंगी, बलदेवों की नौ माताएं होंगी, नौ दशार्ह मण्डल होंगे, वे उत्तमपुरुष, मध्यमपुरुष और प्रधानपुरुष यावत् दो दो बलदेव वासुदेव भाई होंगे। नौ प्रतिशत्रु यानी प्रतिवासुदेव होंगे, इनके पूर्वभव के नौ नाम, पूर्वभव के नौ धर्माचार्य, नियाणा करने की नौ नगरियाँ, नियाणा करने के नौ कारण होंगे। ये सब आगामी उत्सर्पिणी काल में ऐरवत क्षेत्र में होंगे। यह सारा अधिकार कह देना चाहिए। इस प्रकार भरत और ऐरवत दोनों Jain Education International ४३९ For Personal & Private Use Only www.jalnelibrary.org
SR No.004182
Book TitleSamvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages458
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_samvayang
File Size10 MB
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