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समवायांग सूत्र
तिलए य लोहजंघे, वइरजंघे य केसरी पहराए । अपराइए य भीमे, महाभीमे य सुग्गीवे ।। ८९॥ एए खलु पडिसत्तू, कित्तिपुरिसाणं वासुदेवाणं ।
सव्वे वि चक्कजोही, हम्मिहिंति सचक्केहिं ॥ ९०॥ भावार्थ - इन नौ बलदेव वासुदेवों के पूर्वभव के नौ नाम होंगे, नौ धर्माचार्य होंगे, वासुदेवों के नियाण करने की नौ नगरियां होंगी, नियाणा करने के नौ कारण होंगे, नौ प्रतिशत्रु यानी प्रतिवासुदेव होंगे, उनके नाम - १. तिलक, २. लोहजंघ, ३. वज्रजंघ, ४. केशरी, ५. प्रभराज, ६. अपराजित, ७. भीम, ८. महाभीम, ९. सुग्रीव । ये कीर्तिवन्त वासुदेवों के प्रतिशत्रु - प्रतिवासुदेव होंगे । ये सब चक्र से युद्ध करेंगे और अपने ही चक्र से मारे जावेंगे ।। ८९-९०॥
ऐवत भावी तीर्थंकर पद'. ऐरवत क्षेत्र के आगामी तीर्थङ्करों के नाम जंबूहीवे णं दीवे एरवए वासे आगमिस्साए उस्सप्पिणीए चउव्वीसं तित्थयरा : भविस्संति, तंजहा -
सुमंगले य सिद्धत्थे, णिव्वाणे य महाजसे । धम्मज्झए य अरहा, आगमिस्साण होक्खइ ॥ ९१॥ सिरिचंदे पुप्फकेऊ, महाचंदे य केवली । . सुयसागरे य अरहा, आगमिस्साण होक्खइ ॥ ९२॥ सिद्धत्थे पुण्णघोसे य, महाघोसे य केवली । सच्चसेणे य अरहा, आगमिस्साण होक्खइ ॥ ९३॥ सूरसेणे य अरहा, महासेणे य केवली । सव्वाणंदे य अरहा, देवउत्ते य होक्खइ ॥ ९४॥ सुपासे सुव्वए अरहा, अरहे य सुकोसले । अरहा अणंत विजए, आगमिस्साण होक्खइ ॥ ९५॥
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