SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 457
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४४० समवायांग सूत्र . क्षेत्रों में आगामी उत्सर्पिणी सम्बन्धी सारा अधिकार कह देना चाहिए। इच्चेयं एवमाहिज्जइ, तंजहा - कुलगर वंसेइ य एवं तित्थयर वंसेइ य, चक्कवट्टि वंसेइ य, दसार वंसेइ वा, गणधर वंसेइ य, इसि वंसेइ य, जइ वंसेइ य, मुणिवंसेइ य, सुएइ वा, सुअंगे वा, सुय समासेइ वा, सुय खंधेइ वा, समवाएइ वा, संखेइ वा, सम्मत्तमंगमक्खायं अज्झयणं ।त्तिबेमि ॥ ॥ इति समवायं चउत्थमंगं समत्तं ॥ .. कठिन शब्दार्थ - एवमाहिज्जइ - इन नामों से भी कहा जाता है, कुलगर वंसेइ - कुलकर वंश, इसि वंसेइ - ऋषि वंश, जइ वंसेंई - यति वंश, सुअंगे - श्रुतांग, सुय समासेइ - श्रुत समास, सुय खंधेइ- श्रुतस्कंध, समवाएइ - समवाय, समत्तं - समस्तसम्पूर्ण, अङ्गं - अङ्ग-आचाराङ्ग समवायाङ्ग आदि, अक्खायं - कहा है। - भावार्थ - यह समवायाङ्ग सूत्र इन नामों से भी कहा जाता है, जैसे कि - कुलकरों का इस सूत्र में वर्णन है इसलिए इस सूत्र का नाम 'कुलकर वंश' है। इसी प्रकार इस सूत्र में . तीर्थङ्करों का और उनके परिवार एवं उनकी परम्परा का वर्णन होने से इसका नाम 'तीर्थकर वंश' है। इस सूत्र में चक्रवर्तियों का तथा उनके परिवार का वर्णन होने से इस सूत्र का नाम 'चक्रवर्ती वंश' है । इस सूत्र में दशार्ह-मण्डल, गणधर, ऋषि, यति, मुनि और इनके परिवार का वर्णन होने से इस सूत्र का नाम दशाह-वंश, गणधर वंश, ऋषि वंश, यति वंश और मुनि वंश है। श्रुतज्ञान का प्रतिपादक होने से इस सूत्र का नाम 'श्रुत' है.। श्रुतरूपी पुरुष का यह अङ्ग अवयव है, इसलिए इसे सूत्र का नाम 'श्रुताङ्ग' है। सब सूत्रों का इसमें संक्षेप से वर्णन है, इसलिए इस सूत्र का नाम 'श्रुत समास' है। श्रुत समुदाय का प्रतिपादक होने से इस सूत्र का नाम 'श्रुतस्कंध' है। इसमें समस्त जीवादि पदार्थों का वर्णन होने से इस सूत्र का नाम 'समवाय' है। इस सूत्र में एक दो तीन इत्यादि संख्या के क्रम से जीवादि तत्त्वों का वर्णन होने से इस सूत्र का नाम 'संख्या' है। भगवान् ने इसको एक सम्पूर्ण अङ्ग कहा है, किन्तु आचाराङ्ग सूत्र की तरह इसमें दो श्रुतस्कन्ध नहीं है। यह सारा सूत्र एक अध्ययन रूप है, इसमें उद्देशक आदि नहीं हैं। ___ श्री सुधर्मास्वामी अपने शिष्य जम्बूस्वामी से कहते हैं कि - हे आयुष्मन् जम्बू ! मैंने जैसा श्रमण भगवान् महावीर स्वामी से सुना है वैसा ही मैंने तुम्हें कहा है। ॥ इति चौथा अंग समवाय सूत्र सम्पूर्णम् ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004182
Book TitleSamvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages458
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_samvayang
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy