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समवायांग सूत्र
चौबीस तीर्थङ्करों के चैत्य वृक्षों के नाम एएसिं चउव्वीसं तित्थयराणं चउव्वीसं चेइय रुक्खा होत्था, तंजहा -
णग्गोह सत्तिवण्णे, साले पियए पियंगु छत्ताहे । सिरिसे य णागरुक्खे, साली य पिलंक्खु रुक्खे य॥३४॥ तिंदुग पाडल जंबू, आसत्थे खलु तहेव दहिवण्णे । णंदी रुक्खे तिलए, अंबय रुक्खे असोगे य॥ ३५॥ चंपय वउले य, तहा वेडस रुक्खे य धायई रुक्खे । .. साले य वड्डमाणस्स, चेइय रुक्खा जिणवराणं ॥३६॥ बत्तीसं धणुयाई, चेइय रुक्खे य वद्धमाणस्स । णिच्चोउगो असोगो, ओच्छण्णो सालरुक्खेणं ॥३७॥ तिण्णेव गाउयाई, चेइय रुक्खो जिणस्स उसभस्स । सेसाणं पुण रुक्खा , सरीरओ बारस गुणा उ ॥ ३८॥ . सच्छत्ता सपडागा, सवेइया तोरणेहिं उववेया।
सुर असुर गरुल महिया, चेइय रुक्खा जिणवराणं ॥३९॥ कठिन शब्दार्थ - चेइय रुक्खा - चैत्यवृक्ष, असोगो - अशोक वृक्ष, णिच्चोउगो - नित्य ऋतुक - सब ऋतुओं के पुष्पों से युक्त, सालरुखेण - शालिवृक्ष से, ओच्छण्णो - अवच्छन्न-व्याप्त था, सच्छत्ता - छत्र सहित, सपडागा - पताका सहित, सवेइया - वेदिका सहित, उववेया - उपपेत-युक्त।
भावार्थ - इन चौबीस तीर्थङ्करों के चौबीस चैत्य वृक्ष थे, जिनके नीचे तीर्थङ्करों को केवलज्ञान उत्पन्न हुआ था, उनके नाम इस प्रकार हैं - १. न्यग्रोध, २. सप्तपर्ण, ३. शालवृक्ष, ४. प्रियक, ५. प्रियङ्गु, ६. छत्र वृक्ष, ७. शिरीष, ८. नाग वृक्ष, ९. साली, १०. पिलंक्खु, ११. तिन्दुक-टिम्बरु, १२. पाटल, १३. जम्बू, १४. आसत्थ-पीपल, १५. दधिपर्ण, १६. नन्दी वृक्ष, १७. तिलक, १८. आम्र, १९. अशोक, २०. चम्पक, २१. बकुल, २२. वेतस वृक्ष, २३. धातकी वृक्ष और वर्द्धमान स्वामी के २४. शालवृक्ष था। इस प्रकार तीर्थङ्करों के ये चैत्य वृक्ष थे ।। ३४-३६॥
वर्धमान स्वामी का चैत्य वृक्ष बत्तीस धनुष ऊंचा था। समवसरण में जो अशोक वृक्ष था वह सब ऋतुओं के पुष्पों से युक्त था और शालिवृक्ष से आच्छन्न (ढंका हुआ) था।। ३७॥
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