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समवायांग सूत्र
न्यग्रोध परिमंडल, साइए - सादि, वामणे - वामन, खुजे - कुब्ज, हुंडे - हुण्डक, पुढवी मसूर संठाणा - पृथ्वीकाय का संस्थान मसूर की दाल जैसा, आऊ थिबूय संठाणा - अप्काय का संस्थान स्तिबुक यानी पानी के परपोटे के समान, तेऊ सूईकलाव संठाणा - तेऊकाय का संस्थान सूइयों के समूह के समान, वाऊ पडागा संठाणा - वायुकाय का संस्थान पताका के समान।
भावार्थ - अहो भगवन् ! संस्थान कितने प्रकार के कहे गये हैं? हे गौतम! संस्थान छह प्रकार के कहे गये हैं जैसे कि समचतुरस्र, न्यग्रोधपरिमंडल, सादि, वामन, कुब्ज, हुण्डक । अहो भगवन्! नैरयिकों के कौनसा संस्थान होता है? हे गौतम! हुण्डक संस्थान होता है। अहो भगवन्! असुरकुमारों के कौनसा संस्थान होता है? हे गौतम! समचतुरस्र संस्थान होता है। इसी तरह स्तनितकुमारों तक जानना चाहिए। पृथ्वीकाय का संस्थान मसूर की दाल जैसा है। अप्काय का संस्थान स्तिबुक यानी पानी के परपोटे समान है। तेऊकाय का संस्थान सूइयों के समूह के समान है। वायुकाय का संस्थान पताका के समान है। वनस्पति का संस्थान अनेक प्रकार का है। बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चउरिन्द्रिय और सम्मूर्छिम तिर्यञ्च पञ्चेन्द्रिय के हुण्डक संस्थान होता है। गर्भज तिर्यञ्च पञ्चेन्द्रिय के छहों संस्थान होते हैं। सम्मूर्छिम मनुष्य के हुण्डक संस्थान होता है। गर्भज मनुष्य के छहों संस्थान होते हैं। जिस प्रकार असुरकुमार देवों के लिये कहा गया है कि उनके समचतुरस्र संस्थान होता है उसी प्रकार वाणव्यन्तर, ज्योतिषी और वैमानिक देवों के भी समचतुरस्र संस्थान होता है।
विवेचन - जीव के छह संस्थान होते हैं - शरीर के आकार को संस्थान कहते हैं।
१. समचतुरस्र संस्थान - सम का अर्थ है समान, चतुः का अर्थ है चार और अस्र का अर्थ है कोण। पालथी मार कर बैठने पर जिस शरीर के चारों कोण समान हों अर्थात् आसन और कपाल का अन्तर, दोनों जानुओं का अन्तर, वाम स्कन्ध और दक्षिण जानु का अन्तर तथा दक्षिण स्कन्ध और वाम जानु का अन्तर समान हो उसे समचतुरस्त्र संस्थान कहते हैं। यह तो केवल शब्दार्थ है। अथवा सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार जिस शरीर के अङ्ग और उपाङ्ग न्यूनता और अधिकता से रहित मान, उन्मान, प्रमाण युक्त हों उसे समचतुरस्त्र संस्थान कहे हैं। .
२. न्यग्रोधपरिमण्डल संस्थान - वट वृक्ष को न्यग्रोध कहते हैं। जैसे वट वृक्ष ऊपर के भाग में फैला हुआ होता है और नीचे के भाग में संकुचित, उसी प्रकार जिस संस्थान में नाभि के ऊपर का भाग विस्तार वाला अर्थात् शरीर-शास्त्र में बताए हुए प्रमाण वाला हो और नीचे का भाग हीन अवयव वाला हो उसे न्यग्रोध परिमंडल संस्थान कहते हैं।
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