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________________ संस्थान पद ३९९ २. ऋषभनाराच संहनन - जिस संहनन में दोनों ओर से मर्कट बन्ध द्वारा जुड़ी हुई दो हड्डियों पर तीसरी पट्ट की आकृति वाली हड्डी का चारों ओर से वेष्टन हो पर तीनों हड्डियों को भेदने वाली वज्र नामक हड्डी की कील न हो, उसे ऋषभ नाराच संहनन कहते हैं। • ३. नाराच संहनन - जिस संहनन में दोनों ओर से मर्कट बन्ध द्वारा जुड़ी हुई हड्डियाँ हों पर इनके चारों तरफ वेष्टन पट्ट और वज्र नामक कील न हो, उसे नाराच संहनन कहे हैं। ४. अर्धनाराच संहनन - जिस संहनन में एक ओर तो मर्कट बन्ध हो और दूसरी ओर न हो, उसे अर्धनाराच संहनन कहते हैं। - ५. कीलिका संहनन - जिस संहनन में हड्डियाँ केवल कील से जुड़ी हुई हों, उसे कीलिका संहनन कहते हैं। ६. सेवार्त्तक संहनन - जिस संहनन में हड्डियाँ पर्यन्त भाग में एक दूसरे को स्पर्श करती हुई रहती हैं तथा सदा चिकने पदार्थों के प्रयोग एवं तैलादि की मालिश की अपेक्षा रखती हैं उसे सेवार्त्तक संहनन कहते हैं। देवों के और नैरयिक जीवों के शरीरों में हड्डियाँ नहीं होती है अतः उनके संहनन का अभाव बताया गया है। मनुष्य और तिर्यञ्च पञ्चेन्द्रिय जीव छहों संहनन वाले होते हैं। संस्थान पद कइविहे णं भंते! संठाणे पण्णत्ते? गोयमा! छव्विहे संठाणे पण्णत्ते तंजहा - समचउरंसे, णिग्गोहपरिमंडले, साइए, वामणे, खुन्जे, हुण्डे । जेरइया णं भंते! किं संठाणी पण्णत्ता? गोयमा! हुंड संठाणी पण्णत्ता। असुरकुमारा णं भंते! किं संठाणी पण्णत्ता? गोयमा! समचउरंस संठाण संठिया पण्णत्ता। एवं जाव थणिय कुमारा। पुढवी मसूर संठाणा पण्णत्ता । आऊ थिबुय संठाणा पण्णत्ता। तेऊ सूईकलाव संठाणा पण्णत्ता। वाऊ पडागा संठाणा पण्णत्ता। वणस्सई णाणासंठाण संठिया पण्णत्ता। बेइंदिय तेइंदिय चउरिदिय सम्मुच्छिम पंचेंदियतिरिक्खा हुंड संठाणा पण्णत्ता। गब्भवक्कंतिया छव्विह संठाणा पण्णत्ता। सम्मुच्छिम मणुस्सा हुंडसंठाण संठिया पण्णत्ता। गब्भवक्कंतिया णं मणुस्सा णं छव्विहा संठाणा पण्णत्ता। जहा असुरकुमारा तहा वाणमंतर, जोइसिय, वेमाणिया वि।। कठिन शब्दार्थ - संठाणे - संस्थान, समचउरंसे - समचतुरस्र, णिग्गोह परिमंडले Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004182
Book TitleSamvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages458
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_samvayang
File Size10 MB
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