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वेद पद
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३. सादि संस्थान - यहाँ सादि शब्द का अर्थ नाभि से नीचे का भाग है। जिस संस्थान में नाभि के नीचे का भाग पूर्ण और ऊपर का भाग हीन हो उसे सादि संस्थान कहते हैं। - कहीं कहीं सादि संस्थान के बदले साची संस्थान भी मिलता है। साची सेमल (शाल्मली) वृक्ष को कहते हैं। शाल्मली वृक्ष का धड़ जैसा पुष्ट होता है वैसा ऊपर का भाग नहीं होता । इसी प्रकार जिस शरीर में नाभि के नीचे का भाग परिपूर्ण होता है पर ऊपर का भाग हीन होता है वह साची संस्थान है।
४. कुब्ज संस्थान - जिस शरीर में हाथ, पैर, सिर, गर्दन आदि अवयव ठीक हों पर छाती, पेट, पीठ आदि टेढे हों अथवा पीठ या छाती की ओर कुबड़ निकली हो उसे कुब्ज संस्थान कहते हैं।
५. वामन संस्थान - जिस शरीर में छाती, पीठ, पेट आदि अवयव पूर्ण हों पर हाथ, पैर आदि अवयव छोटे हों उसे वामन संस्थान कहते हैं।
नोट - ठाणाङ्ग सूत्र, प्रवचनसारोद्धार और द्रव्यलोक प्रकाश में कुब्ज तथा वामन संस्थान के उपरोक्त लक्षण ही व्यत्यय (उलट) करके दिये हैं। - ६. हुंडक संस्थान - जिस शरीर के समस्त अवयव बेढब हों अर्थात् एक भी अवयव शास्त्रोक्त प्रमाण के अनुसार न हो वह हुंडक संस्थान है।
नोट - पृथ्वीकाय आदि पांच स्थावर के हुण्डक संस्थान ही होता है किन्तु आकृति विशेष की अपेक्षा से यहाँ मसूर की दाल आदि भिन्न-भिन्न स्थान बता दिये गये हैं।
वेद पद कविहे णं भंते! वेए पण्णत्ते? गोयमा! तिविहे वेए पण्णत्ते तंजहा - इत्थीवेए पुरिसवेए, णपुंसगवेए। णेरइया णं भंते! किं इत्थीवेया पुरिसवेया णपुंसगवेया पण्णत्ता? गोयमा! णो इत्थीवेया, णो पुरिसवेया, णपुंसगवेया पण्णत्ता। असुरकुमारा णं भंते! किं इत्थीवेया पुरिसवेया णपुंसगवेया? गोयमा! इत्थीवेया, पुरिसवेया, णो णपुंसगवेया, जाव थणियकुमारा। पुढवी आऊ तेऊ वाऊ वणस्सई बि ति चउरिंदिय सम्मुच्छिम पंचिदिय तिरिक्ख, सम्मुच्छिम मणुस्सा णपुंसगवेया। गब्भवक्कंतिय मणुस्सा पंचिंदियतिरिक्खा य तिवेया। जहा असुरकुमारा तहा वाणमंतर जोइस, वेमाणिया वि।
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