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________________ ३६२ समवायांग सूत्र सातवीं नरक का वर्णन सत्तमीए णं पुढवीए पुच्छा? गोयमा! सत्तमीए णं पुढवीए अत्तर जोयणसयसहस्साई बाहल्लाए उवरि अद्धतेवण्णं जोयणसहस्साई ओगाहित्ता हेट्ठा वि अद्धतेवण्णं जोयणसहस्साई वज्जित्ता मज्झे तिसु जोयणसहस्सेसु एत्थ णं सत्तमीए पुढवीए णेरइयाणं पंच अणुत्तरा महइमहालया महाणिरया पण्णत्ता, तंजहा-काले, महाकाले, रोरुए, महारोरुए, अप्पइट्ठाणे णामं पंचमे। ते णं णिरया वट्टे य. तंसा य अहे खुरप्पसंठाणसंठिया जाव असुभा णरगा असुभाओ णरएसु वेयणाओ ॥. कठिन शब्दार्थ - वट्टे - वर्तुलाकार, तंसा - त्र्यस्र (त्रिकोण), खुरप्पसंठाणसंठियाक्षुप्र-उस्तरे के आकार वाले। भावार्थ - गौतम स्वामी श्रमण भगवान् महावीर स्वामी से सातवीं नरक के विषय में पृच्छा करते हैं? भगवान् फरमाते हैं - हे गौतम! सातवीं नरक की मोटाई एक लाख आठ हजार योजन है। उसमें से ५२॥ हजार योजन ऊपर छोड़ कर और ५२॥ हजार योजन नीचे छोड़ कर बीच में तीन हजार योजन में सातवीं नरक के नैरयिकों के पांच प्रधान महान् नरकावास कहे गये हैं - उनके नाम इस प्रकार हैं - काल, महाकाल, रौरव, महारौरव और पांचवां अप्रतिष्ठान नाम का है। वे नरकावास बाहर वर्तुलाकार और अन्दर त्र्यस्र-त्रिकोण है और नीचे क्षुप्र-उस्तरे के आकार वाले वे नरकावास अशुभ हैं और उन नरकावासों में अशुभ वेदनाएं हैं। विवेचन - सातों नरकों का मोटापन, नरकावासों की संख्या और परिमाण आदि बातें जो संग्रहणी गाथाओं में बताई गयी है, उनका अर्थ भावार्थ में स्पष्ट कर दिया गया है। सातों नरकों में नरकावास तीन प्रकार के हैं - इन्द्रक, आवलिका प्रविष्ट (श्रेणीबद्धपंक्ति बद्ध), आवलिका बाह्य (पुष्पावकीर्णक) । इन्द्रक नरकावास सब नरकावासों के बीच में होता है और श्रेणीबद्ध नरकावास उसकी आठों दिशाओं में अवस्थित हैं। पुष्पावकीर्णक या आवलिकाबाह्य नरकावास श्रेणीबद्ध नरकावासों के मध्य में अवस्थित हैं। इन्द्रक नरकावास गोल होते हैं और शेष नरकावास त्रिकोण चतुष्कोण आदि नाना प्रकार वाले कहे गये हैं तथा नीचे की ओर सभी नरकावास क्षुरप्र (उस्तरा-खुरपा) के आकार वाले हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004182
Book TitleSamvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages458
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_samvayang
File Size10 MB
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