SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 380
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ असुरकुमारों का वर्णन ३६३ असुरकुमारों का वर्णन केवइया णं भंते! असुरकुमारावासा पण्णत्ता? गोयमा! इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए असी उत्तरजोयणसयसहस्स बाहल्लाए उवरि एगं जोयणसहस्सं ओगाहित्ता हेट्ठा चेगं जोयणसहस्सं वज्जित्ता मज्झे अट्ठहत्तरि जोयणसयसहस्से एत्थ णं रयणप्पभाए पुढवीए चउसद्धिं असुरकुमारावाससयसहस्सा पण्णत्ता। ते णं भवणा बाहिं वट्टा अंतो चउरंसा अहे पोक्खरकण्णिया संठाण संठिया, उकिण्णंतर विउल गंभीर खायफलिहा अट्टालय चरिय दार गोउर कवाड तोरण पडिदुवारदेसभागा जंत मुसल मुसुंढि (भुसुंढि )सयग्घिपरिवारिया अउज्झा अडयाल कोट्ठगरइया अडयाल कयवणमाला लाउल्लोइयमहिया गोसीस सरस रत्त चंदण दद्दर दिण्ण पंचंगुलितला कालागुरुपवर कुंदुरुक्क तुरुक्कं डझंत धूव मघमघेत गंधुद्धयाभिरामा सुगंधिया गंधवट्टिभूया अच्छा सण्हा लण्हा घट्ठा मट्ठा णीरया णिम्मला वितिमिरा विसुद्धा सप्पभा समिरीया सउज्जोया पासाईया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा, एवं जं जस्स कमइ तं तस्स जं जं गाहाहिं भणियं तह चेव वण्णओ। कठिन शब्दार्थ - पोक्खरकण्णिया संठाण संठिया - पुष्कर कर्णिका (कमल का मध्यभाग) के आकार के, उकिण्णंतर विउलगंभीरखायफलिहा - नीचे गहरी खोदी हुई खाई और ऊपर विशाल परिखा-पाली से घिरे हुए, अट्टालय चरिय दार गोउर कवाड तोरण पडिदुवार-देसभागा - अट्टालिका, चरक द्वार गलियाँ, किंवाड, तोरण, प्रतिद्वार यथास्थान व्यस्थित जंतमुसल मुसुंढि सयग्घि परिवारिया - यंत्र, मूसल, भुसुंढ़ी और शतघ्नी तोप आदि शस्त्रों से युक्त अउज्झा - अयोध्य, लाउल्लोइयमहिया - जिनका तल लीपा हुआ और दीवारे घिस कर चिकनी की हुई, गोसीस सरस रत्त चंदणं ददर दिण्णपंचंगुलितला - जिनकी दीवारों पर गोशीर्ष चन्दन और लाल चन्दन के लेप से पांचों अंगुलियों के छापे लगाये हुए, कालागुरु पवरकंदुरुक्क तुरुक्क डझंत धूवमघमघेत गंधुद्धयाभिरामा - कृष्णा गुरु, कुन्दुरुष्क, चीड़, तुरुष्क आदि सुगंधित द्रव्यों के जलते हुए धूप से जो मघमघायमान गंध से रमणीय, अच्छा - स्वच्छ, सण्हा - श्लक्षण, लण्हा - चिकने, घट्टा - घृष्ट यानी घिसे हुए, मट्ठा - मृष्ट-घिस कर चिकने बनाये हुए, सप्पभा - प्रभायुक्त, सम्मिरिया (सस्सिरिया)मरिचि यानी किरणों से युक्त एवं श्री सहित, पासाईया - प्रासादीया-चित्त को प्रसन्न करने वाले, दरिसणिज्जा - दर्शनीय-देखने योग्य, अभिरूवा - अभिरूप, पडिरूवा - प्रतिरूप। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004182
Book TitleSamvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages458
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_samvayang
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy