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________________ नैरयिकों का वर्णन चउतीसा चउचत्ता अट्ठतीसं च सयसहस्साओ । पण्णा चत्तालीसा दाहिणओ हुंति भवणाई ॥ अर्थात् दक्षिण दिशा के असुरकुमारों के ३४ लाख, नागकुमारों के ४४ लाख, सुवर्णकुमारों के ३८ लाख और वायुकुमारों के ५० लाख तथा शेष छह द्वीपकुमार आदि प्रत्येक के चालीस चालीस लाख भवन हैं । PEEFFET तीसा चत्तालीसा चोतीसं चेव सयसहस्साइं । छायाला छत्तीसा उत्तरओ होंति भवणाई ॥ अर्थात् - उत्तर दिशा के असुरकुमारों के ३० लाख, नागकुमारों के ४० लाख, सुवर्ण कुमारों के ३४ लाख, वायुकुमारों के ४६ लाख और शेष द्वीपकुमारादि छह के प्रत्येक के छत्तीस लाख, छत्तीस लाख भवन हैं। रहने के स्थान को 'आवास' कहते हैं । भवनपति देवों के आवासों को 'भवन' कहते हैं और वैमानिक देवों के आवासों को 'विमान' कहते हैं। इनकी संख्या को बतलाने के लिये नक्शा इस प्रकार है दक्षिण दिशा में १. असुरकुमारों के २. नागकुमारों के ३. सुवर्णकुमारों के ४. वायुकुमारों के .५. द्वीपकुमारों के ६. दिशाकुमारों के ७. उदधिकुमारों के ८. विद्युतकुमारों के ९. स्तनितकुमारों के १०. अग्निकुमारों के Jain Education International ३४ लाख ४४ लाख ३८ लाख ५० लाख ४० लाख -४० लाख ४० लाख ४० लाख ४० लाख ४० लाख उत्तर दिशा में ३० लाख ४० लाख For Personal & Private Use Only ३६१ ३४ लाख ४६ लाख ३६ लाख ३६ लाख ३६ लाख ३६ लाख ३६ लाख ३६ लाख ४०६००००० ३६६००००० (चार करोड़ छह लाख ) (तीन करोड़ छयासट लाख) मूल में जो 'छण्हं जुयलयाणं' कुल ७७२००००० (सात करोड़ बहत्तर लाख ) भवन हैं। शब्द दिया है, इसका आशय यह है कि - 'द्वीपकुमार से लेकर अग्निकुमार' तक छह भवनपति देवों के युगल अर्थात् उत्तर दिशा और दक्षिण दिशा दोनों के छहत्तर- छहत्तर लाख आवास हैं। www.jainelibrary.org
SR No.004182
Book TitleSamvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages458
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_samvayang
File Size10 MB
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