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समवायांग सूत्र
वह अनवस्थित न होगा। इस प्रकार पदार्थों को अनवस्थित मान कर उनमें क्रिया का अभाव मानने वाले अक्रियावादी कहलाते हैं।
२. क्रिया की क्या जरूरत है? केवल चित्त की पवित्रता होनी चाहिए। इस प्रकार ज्ञान ही से मोक्ष की मान्यता वाले अक्रियावादी कहलाते हैं। ____३. जीवादि के अस्तित्व को न मानने वाले अक्रियावादी कहलाते हैं। अक्रियावादी के ८४ भेद होते हैं। यथा - "
जीव, अजीव, आस्रव, बंध, संवर, निर्जरा और मोक्ष। इन सात तत्त्वों के स्व और पर के भेद से १४ भेद होते हैं। काल, यदृच्छा, नियति, स्वभाव, ईश्वर और आत्मा इन छहों की अपेक्षा १४ भेदों का विचार करने से ८४ भेद होते हैं। जैसे - जीव स्वतः काल से नहीं है, जीव परतः काल से नहीं है। इस प्रकार काल की अपेक्षा जीव के दो भेद होते हैं। काल की तरह यदृच्छा, नियति आदि की अपेक्षा भी जीव के दो दो भेद होते हैं। इस प्रकार १२ भेद हुए। जीव की तरह शेष तत्त्वों के भी बारह बारह भेद हैं। इस तरह कुल ८४ भेद होते हैं। ___ अज्ञानवादी - जीवादि अतीन्द्रिय पदार्थों को जानने वाला कोई नहीं है। न उन के जानने से कुछ सिद्धि ही होती है। इसके अतिरिक्त समान अपराध में ज्ञानी को अधिक दोष माना है और अज्ञानी को कम । इसलिये अज्ञान ही श्रेयरूप है। ऐसा मानने वाले अज्ञानवादी हैं।
अज्ञानवादी के ६७ भेद हैं। यथा -
जीव, अजीव, आस्रव, बन्ध, पुण्य, पाप, संवर, निर्जरा और मोक्ष इन नव तत्त्वों के सद्, असद्, सदसद् अवक्तव्य, सदवक्तव्य, असदवक्तव्य, सदसदवक्तव्यं इन सात भङ्गों से ६३ भेद होते हैं और उत्पत्ति के सद, असद्सदसद् और अवक्तव्य की अपेक्षा से चार भङ्ग हुए। इस प्रकार ६७ भेद अज्ञानवादी के होते हैं। जैसे जीव सद् है, यह. कौन जानता है? और इसके जानने का क्या प्रयोजन है?
विनयवादी - स्वर्ग, अपवर्ग आदि के कल्याण की प्राप्ति विनय से ही होती है। इसलिये विनय ही श्रेष्ठ है। इस प्रकार विनय को प्रधान रूप से मानने वाले विनयवादी कहलाते हैं।
विनयवादी के ३२ भेद हैं -
देव, राजा, यति, ज्ञाति, स्थविर, अधम, माता और पिता इन आठों का मन, वचन, काया और दान इन चार प्रकारों से विनय होता है इस प्रकार आठ को चार से गुणा करने से ३२ भेद होते हैं।
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