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बारह अंग सूत्र
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अल्पाक्षरमसंदिग्धं, सारवद्विश्वतोमुखम् । (गूढनिर्णयम्)
अस्तोभमनवद्यं च, सूत्रं सूत्रविदो विदुः ॥ अर्थ - जिसमें अक्षर अल्प हों, जो सन्देह रहित हो, जो सार युक्त हो, जिसमें सभी प्रकार के अर्थ ग्रहण कर लिये गये हों अथवा जिसमें गूढ तत्त्वों का निर्णय किया गया हो, . जो सूत्र के अठारह दोषों से रहित हों, जो बहुत विस्तृत न हों, उसे सूत्र कहते हैं।
इस सूयगडाङ्ग (सूत्रकृताङ्ग) सूत्र में स्वसिद्धान्त परसिद्धान्त और स्व-पर सिद्धान्त (उभय सिद्धान्त) का वर्णन किया गया है।
क्रियावादी आदि ३६३ पाखण्ड मत का स्वरूप बतला कर उसकी अपसिद्धान्तता को बतलाकर उसका खण्डन किया गया है। क्रियावादी के १८०, अक्रियावादी के ८४, अज्ञानवादी के ६७ और विनयवादी के ३२, ये कुल ३६३ भेद होते हैं।
उनमें क्रियावादी का स्वरूप इस प्रकार है -
१. कर्ता के बिना क्रिया यह संभव नहीं है। इसीलिये क्रिया के कर्ता रूप से आत्मा के अस्तित्व को मानने वाले क्रियावादी हैं।
२. क्रिया ही प्रधान है, ज्ञान की कोई आवश्यकता नहीं है, इस प्रकार क्रिया को प्रधान मानने वाले क्रियावादी हैं। _____३. जीव अजीव आदि पदार्थों के अस्तित्व को एकान्त रूप से मानने वाले क्रियावादी हैं। इनके १८० भेद इस प्रकार होते हैं -
जीव, अजीव, आस्रव, बंध, पुण्य, पाप, संवर, निर्जरा और मोक्ष इन नव पदार्थों के स्व और पर से १८ भेद हुए । इन में के प्रत्येक के काल, नियति, स्वभाव, ईश्वर और आत्मा की अपेक्षा पांच पांच भेद करने से १८० भेद होते हैं। जैसे जीव, स्व रूप से काल की अपेक्षा नित्य है। जीव स्व रूप से काल की अपेक्षा अनित्य है। जीव पर रूप से काल की अपेक्षा नित्य है। जीव पर रूप से काल की अपेक्षा अनित्य है। इस प्रकार काल की अपेक्षा चार भेद होते हैं। इस प्रकार नियति, स्वभाव, ईश्वर और आत्मा की अपेक्षा जीव के चार चार भेद होते हैं। इस तरह जीव आदि नव तत्त्वों के प्रत्येक के बीस बीस भेद होते हैं और कुल १८० भेद होते हैं।
अक्रियावादी - अक्रियावादी की भी अनेक व्याख्याएँ हैं। यथा - १. किसी भी अनवस्थित पदार्थ में क्रिया नहीं होती है। यदि पदार्थ में क्रिया होगी तो
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