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समवाय ७८
२४३ MAMMANITAMARHAMAKAMANNAwwwwwwRTANTANKinarMARATTIMMENTrance
कठिन शब्दार्थ - आहेवच्चं - आधिपत्य-अधिपतिपना, पोरेवच्चं - पुरोवर्तित्वअग्रगामीपना, सामित्तं - स्वामित्व-स्वामीपेना, भट्टित्तं - भर्तृत्व-भर्तृपना, महारायत्तं - महाराजपना, आणा-ईसरसेणावच्चं - आज्ञाप्रधानसेनानायकत्व-प्रधान सेना नायकपना, उत्तरायण णियट्टे - उत्तरायण से निवृत्त होकर।
भावार्थ - देवों के राजा देवों के इन्द्र शक्रेन्द्र का वैश्रमण लोकपाल सुवर्णकुमार और द्वीपकुमार देवों के ७८ लाख भवनों पर अधिपतिपना, अग्रगामीपना, स्वामीपना, भर्तृपना, महाराजपना, प्रधान सेनानायकपना करता हुआ एवं उनका पालन करता हुआ रहता है। श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के आठवें गणधर श्री अकम्पित स्वामी ७८ वर्ष का पूर्ण आयुष्य भोग कर सिद्ध बुद्ध यावत् सब दुःखों से मुक्त हुए थे। उत्तरायण से निवृत्त होकर जब सूर्य प्रथम मण्डल से उनचालीसवें मण्डल में भ्रमण करता है तब दिन में मुहूर्त का ६१ भाग घट जाता है और रात्रि में मुहूर्त का ६९ भाग बढ़ जाता है। इसी तरह जब सूर्य दक्षिणायन से निवृत्त होकर उत्तरायण में जाता हुआ पहले मण्डल से उनचालीसवें मण्डल में पहुँचता है तब रात्रि - मुहूर्त का १ भाग घट जाती है और दिन ६१ भाग बढ़ जाता है ॥ ७८ ॥ - विवेचन - सौधर्म नामक पहले देवलोक के इन्द्र शक्र के चार लोकपाल हैं। सोम, यम, वरुण और वैश्रमण। उनमें से उत्तर दिशा के लोकपाल का नाम वैश्रमण है। वह सुवर्णकुमार देवों के दक्षिण दिशा में ३८ लाख भवनावास तथा द्वीपकुमार जाति के देव देवियों के ४० लाख भवनावास सब मिलाकर ७८ लाख भवनावासों पर अर्थात् भवनवासी देव देवियों पर आधिपत्य, पुरोवर्तित्व (अग्रगामीपणा) भर्तृत्व (पालुक पोषकंपणा), स्वामीपणा और महाराजपणा अर्थात् लोकपालपणा एवं आज्ञा प्रधान सेनानायकपणा करता हुआ तथा अपने सेवक देवों द्वारा करवाता हुआ तथा स्वयं उनका पालन करता हुआ रहता है (द्वीपकुमारों पर अधिपतिपणा आदि करने की बात भगवती सूत्र में दिखाई नहीं देती है। परन्तु यहाँ समवायाङ्ग में तो बतलाया है)।
श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के आठवें गणधर अकम्पित स्वामी ४८ वर्ष गृहस्थ अवस्था में रहे थे और ३० वर्ष श्रमण पर्याय का (छद्मस्थ अवस्था में ९ वर्ष और भवस्थ केवली अवस्था में २१ वर्ष) पालन किया। इस प्रकार कुल ७८ वर्ष का आयुष्य भोग कर सिद्ध, बुद्ध और मुक्त हुए।
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