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________________ २४४ समवायांग सूत्र ___ उत्तरायण से निवृत्त होकर सूर्य प्रथम मण्डल से उनचालीसवें मण्डल में जब आता है तब दिन को एक मुहूर्त के. ६१ भाग कम करता है और इतना ही भाग रात्रि को बढ़ाता है। यहाँ पर जब सूर्य दक्षिण दिशा में जाता है। उसका पहला मण्डल समझना चाहिए। किन्तु सर्वाभ्यन्तर मण्डल से नहीं। इसी प्रकार दक्षिणायन के प्रथम मण्डल की अपेक्षा ३९ वां मण्डल समझना चाहिए। किन्तु सर्वाभ्यन्तर मण्डल की अपेक्षा नहीं क्योंकि सर्वाभ्यन्तर मण्डल की अपेक्षा तो वह चालीसवाँ मण्डल है। इस कथन से यह समझना चाहिए कि जब सूर्य दक्षिणायन में होता है तब दिनमान को कम करता है और रात्रिमान को बढ़ाता है और जब सूर्य उत्तरायण में होता है तब दिनमान को बढ़ाता है और रात्रि को कम करता है। उन्यासीवां समवाय वलयामुहस्स णं पायालस्स. हेट्ठिल्लाओ चरमंताओ इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए हेढिल्ले चरमंते एम णं एगूणासीई जोयणसहस्साइं अबाहाए अंतरे पण्णत्ते, एवं केउस्स वि, जूयस्स वि, ईसरस्स वि। छट्ठीए पुढवीए बहुमज्झदेसभायाओ छट्ठस्स घणोदहिस्स हेट्ठिल्ले चरमंते एस णं एगूणासीइं जोयण सहस्साई अबाहाए अंतरे. पण्णत्ते। जंबूहीवस्स णं दीवस्स बारस्स य बारस्स य एस णं एगूणासीई जोयणसहस्साइं साइरेगाई अबाहाए अंतरे पण्णत्ते ॥ ७९ ॥ कठिन शब्दार्थ - वलयामुहस्स पायालस्स - बंडवामुख पाताल कलश के, केउस्सकेतु नामक पाताल. कलश का, यस्स - यूप का, ईसरस्स - ईश्वर नामक पाताल कलश का, घणोदहिस्स - घनोदधि के। भावार्थ - लवण समुद्र के पूर्व दिशा में स्थित बडवामुख पाताल कलश के नीचे के चरमान्त से इस रत्नप्रभा पृथ्वी के नीचे के चरमान्त तक ७९ हजार योजन का अन्तर कहा गया है। अर्थात् रत्नप्रभा नामक पहली नरक का पिण्ड एक लाख अस्सी हजार योजन का है उसमें से एक लाख योजन का पाताल कलशं और एक हज़ार योजन का समुद्र निकाल देने पर ७९ हजार योजन का अन्तर रह जाता है। इसी तरह पश्चिम में स्थित केतु, दक्षिण में स्थित भूप और उत्तर में स्थित ईश्वर नामक पाताल कलशों का भी अन्तर जानना चाहिए। छडी नरक के मध्य भाग से छठे घनोदधि के नीचे के चरमान्त तक ७९ हजार योजन का Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004182
Book TitleSamvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages458
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_samvayang
File Size10 MB
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