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समवाय५७
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सत्तावनवां समवाय तिण्हं गणिपिडगाणं आयारचूलियावजाणं सत्तावण्णं अन्झयणा पण्णत्ता तंजहाआयारे सूयगडे ठाणे। गोथूभस्स णं आवासपव्वयस्स पुरच्छिमिल्लाओ चरमंताओ वलयामुहस्स महापायालस्स बहुमज्झदेसभाए एस णं सत्तावण्णं जोयण सहस्साई अबाहाए अंतरे पण्णत्ते, एवं दगभासस्स केउयस्स य, संखस्स य जूयस्स य, दगसीमस्स य ईसरस्स य। मल्लिस्स णं अरहओ सत्तावण्णं मणपज्जवणाणीसया होत्था। महाहिमवंतरुप्पीणं वासहरपव्वयाणं जीवा णं धणुपिटुं सत्तावण्णं सत्तावण्णं जोयणसहस्साइं दोण्णि य तेणउए जोयणसए दस य एगूणवीसइभाए जोयणस्स परिक्खेवेणं पण्णत्तं ॥५७ ॥ - कठिन शब्दार्थ - गणिपिडगाणं - गणि पिटकों में, आयार चूलियावजाणं - आचारांग सूत्र की चूलिका को छोड़ कर बाकी, बहुमज्झदेसभाए - मध्य भाग तक, परिक्खेवेणं - परिक्षेपविस्तृत ।। . भावार्थ - आचाराङ्ग, सूयगडाङ्ग और स्थानाङ्ग, इन तीन गणिपिटकों में आचाराङ्ग सूत्र की चूलिका को छोड़ कर बाकी सत्तावन अध्ययन कहे गये हैं। आचाराङ्ग सूत्र के दोनों श्रुतस्कन्धों में २५ अध्ययन हैं उनसे एक चूलिका को छोड़ देने से बाकी २४ रहे, सूयगडाङ्ग सूत्र के दोनों श्रुतस्कन्धों के २३ अध्ययन हैं और स्थानाङ्ग सूत्र के १० अध्ययन हैं, इस प्रकार ये सब मिला कर ५७ अध्ययन होते हैं। गोस्तभ आवास पर्वत के पर्व चरमान्त से बडवामुख महापातालं कलश के मध्य भाग तक सत्तावन हजार योजन का अन्तर कहा गया है। जगती के कोट से लवण समुद्र में ४२ हजार योजन जाने पर बेलंधर नागराज का गोस्तूभ आवास पर्वत है। उससे पूर्व दिशा में बडवामुख महापाताल कलश ५२ हजार योजन है। वह कलश १० हजार योजन का चौड़ा है, उसका मध्य भाग ५ हजार योजन का होता है, इस प्रकार ५२ और ५ मिला कर ५७ हजार योजन होता है। इसी प्रकार दक्षिण में दगभास पर्वत से केतु महापाताल कलश के मध्यभाग, पश्चिम में शंख पर्वत से यूपक महापाताल कलश का मध्य भाग और उत्तर में दगसीम पर्वत से ईश्वर महापाताल कलश के मध्य भाग तक ५७ हजार योजन का अन्तर है। उन्नीसवें तीर्थङ्कर श्री मल्लिनाथ स्वामी के सत्तावन सौ मनःपर्ययज्ञानी थे। महा हिमवान् और रुक्मी वर्षधर पर्वतों की जीवा का धनुःपृष्ठ ५७२९३ योजन और एक योजन के १९ में से १० का विस्तृत कहा गया है ॥ ५७ ॥
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