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समवायांग सूत्र
४. अंतगड (अन्तकृत) - 'अन्तो-भवान्तः, कृतो-विहितो येन स अन्तकृतः' जिसने भवभ्रमण रूप संसार का अन्त कर दिया है। उसे अन्तकृत कहते हैं।
५. परिणिव्वुडे - परिनिर्वृत्तः - 'समन्ताच्छीतीभूतः कर्मकृतसकलसन्ताप विरहात् कर्मक्षय सिद्धेः, सर्वतः शारीर मानसास्वास्थ्य विरहितः।'
अर्थ - जिस प्रकार चूल्हे में अग्नि जलती हो और ऊपर पानी रखा हुआ हो तो वह गरम होकर उबलता रहता है परन्तु नीचे की अग्नि बुझ जाने पर उसमें उबाल नहीं आता अपितु शान्त होकर शीतल बन जाता है। इसी प्रकार कषाय रूपी अग्नि (कसाया अग्गिणो युत्ता) जब तक जलती रहती है तब तक जीव संसार में परिभ्रमण करता रहता है। शारीरिक और मानसिक दुःख रूप अग्नि में जलता रहता है। परन्तु कषाय रूपी अग्नि जब सर्वथा क्षय हो जाती है एवं आठों कर्म क्षय हो जाते हैं तब जीव शारीरिक और मानसिक सब दुःखीं से रहित हो कर परम शीतल और शान्त बन जाता है।
पुण्य के फल बतलाने वाले ५५ अध्ययन और पाप के फल बतलाने वाले ५५ अध्ययन । कौनसे हैं, उसका खुलासा नहीं मिलता है। वे अभी उपलब्ध नहीं है। जो विपाक सूत्र अभी उपलब्ध है उसमें दुःख विपाक के दस अध्ययन और सुख विपाक के भी दस अध्ययन; इस प्रकार विपाक सूत्र में बीस अध्ययन हैं।
छप्पनवां समवाय . . जंबूहीवे णं दीवे छप्पण्णं णक्खत्ता चंदेंण सद्धिं जोग. जोइंसु वा जोइंति वा जोइस्संति वा। विमलस्स णं अरहओ छप्पण्णं गणा छप्पण्णं गणहरा होत्था ॥५६ ॥
भावार्थ - इस जम्बूद्वीप में छप्पन नक्षत्रों ने चन्द्रमा के साथ योग किया था, योग करते हैं और योग करेंगे । तेरहवें तीर्थङ्कर श्री विमलनाथ स्वामी के छप्पन गण और छप्पन गणधर थे ॥ ५६ ॥
विवेचन - जम्बूद्वीप में दो चन्द्र हैं। एक-एक चन्द्र के २८-२८ नक्षत्र होने से दोनों चन्द्रमाओं के मिलाकर ५६ नक्षत्र हो जाते हैं। आवश्यक सूत्र में विमलनाथ भगवान् के ५७ गण और ५७ गणधर बतलाये हैं। यह मतान्तर मालूम होता है।
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