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समवायांग सूत्र
विवेचन - वृत्त (गोल) क्षेत्र की धनुष की डोरी के आकार की जीवा होती है। इसलिये उसका धनुःपृष्ठ भी होता है। यहाँ धनुःपृष्ठ का परिमाण बतलाने वाली संवाद गाथा इस प्रकार है - 'सत्तावन्न सहस्सा धणुपिटुं तेणउय दुसय दस कल' (गाथा अर्द्ध)
अठावनवां समवाय - पढम दोच्च पंचमासु तिसु पुढवीसु अट्ठावण्णं णिरयावाससयसहस्सा पण्णत्ता। णाणावरणिज्जस्स वेयणिय आउय णाम अंतराइयस्स एएसिं पंचण्हं कम्म पयंडीणं अट्ठावण्णं उत्तरपगडीओ पण्णत्ताओ। गोथूभस्स णं आवास पव्वयस्स पच्चथिमिल्लाओ चरमंताओ वलयामुहस्स महापायालस्स बहुमज्झदेसभाए एस णं अट्ठावण्णं जोयणसहस्साई अबाहाए अंतरे पण्णत्ते एवं चउदिसिं वि णेयव्वं ॥५८॥
कठिन शब्दार्थ - वलयामुंहस्स महापायालस्स - बडवामुख महापाताल कलश, के, चउदिसिं वि - चारों दिशाओं में, णेयव्वं - जानना चाहिए।
भावार्थ - पहली नरक में ३० लाख नरकावास हैं, दूसरी में २५ लाख नरकावास हैं और पांचवीं में ३ लाख नरकावास हैं, इस प्रकार इन तीनों नरकों के सब मिला कर अठावन लाख नरकावास कहे गये हैं। ज्ञानावरणीय की ५ प्रकृतियाँ, वेदनीय की २, आयु की ४, नाम कर्म की ४२ और अन्तराय की ५, इस प्रकार इन पांच कर्मों की सब प्रकृतियों को मिला कर अठावन उत्तर प्रकृतियाँ कही गई हैं। गोस्तूभ आवास पर्वत के पश्चिम के चरमान्त से बडवामुख महापाताल कलश के मध्य भाग तक ५८ हजार योजन का अन्तर कहा गया है। • क्योंकि पूर्व दिशा के.चरमान्त से ५७ हजार योजन का अन्तर होता है और एक हजार योजन का गोस्थूभ पर्वत चौड़ा है, इसलिए पश्चिम चरमान्त तक ५८ हजार योजन का अन्तर होता है। इसी तरह चारों दिशाओं में जानना चाहिए॥ ५८ ॥
विवेचन - जिस प्रकार गोस्थूभ आवास पर्वत का और बडवामुख पातालकलश का अन्तर बतलाया है उसी प्रकार दक्षिण में दकभास आवास पर्वत का और केतुक महापाताल का तथा पश्चिम में शंख आवास पर्वत और यूपक महापाताल कलश का और उत्तर में दकसीन पर्वत से ईश्वर महापाताल कलश का ५८००० योजन का अन्तर होता है।
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