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________________ १७८ समवायांग सूत्र ."जिनानां तीर्थकराणां मनुजलोक निर्वृतानां 'सकहा' सक्थीनि अस्थीनि" . . अर्थात् उन गोल डिब्बों में तीर्थङ्करों की अस्थियाँ (हड्डियाँ) रखी हुई हैं। यहाँ पर विचारणीय बात यह है कि - जम्बूद्वीप पण्णत्ति सूत्र के दूसरे वक्षस्कार में बतलाया है कि - जब तीर्थङ्कर भगवान् का दाह संस्कार हो जाता है तब शक्रेन्द्र भगवान् की ऊपर की दक्षिण तरफ की दाढ़ को एवं ईशानेन्द्र ऊपर की उत्तर की तरफ बांयी दाढ को ग्रहण करता है। इसी प्रकार नीचे की दक्षिण की दाढ को चमरेन्द्र और उत्तर की दाढ़ को बलीन्द्र ग्रहण करता है। शेष दूसरे देव यथायोग्य उनकी अस्थियों को ग्रहण करते हैं। किन्तु वे अस्थियाँ भी सब देवों को प्राप्त नहीं होती हैं। जलने के बाद शेष रही अस्थियाँ परिमित रहती हैं और देव असंख्यात हैं। - विचारणीय बात यह है कि - ये पांचों सभायें शाश्वत हैं। माणवक चैत्य भी शाश्वत है। उसमें रखे हुये समुद्गक भी शाश्वत हैं। उनमें रखी हुई दाढायें और अस्थियाँ भी शाश्वत हैं इसलिये ये पृथ्वीकाय के शाश्वत पुद्गल हैं और वे दाढायें और अस्थियों के आकार वाली हैं। परन्तु यहाँ से ले जायी गई तीर्थङ्कर भगवान् की असली दाढा और अस्थियाँ नहीं है। उनको देवता भक्ति वश ले जाते हैं। परन्तु वे तो कृत्रिम वस्तुएं हैं इसलिये संख्यात काल से अधिक नहीं रहती हैं। अतः फिर स्वतः विलीन हो जाती हैं अर्थात् नष्ट हो जाती है। किन्तु वहाँ रही हुई दाढायें और अस्थियाँ तो अनादि काल से है अर्थात् अनन्त काल बीत चुका और अनन्त काल तक ज्यों की त्यों रहेंगी। अतः वे शाश्वत हैं। वे तीर्थङ्कर की दाढा और अस्थि नहीं है। .. छत्तीसवां समवाय छत्तीसं उत्तरज्झयणा पण्णत्ता तंजहा - १. विणयसुयं २. परीसहो ३. चाउरंगिजं ४. असंखयं ५. अकाममरणिजं ६. पुरिसविज्जा ७. उरब्भिनं ८. काविलीयं ९. णमिपव्वजा १०. दुमपत्तयं ११. बहुसुयपूजा १२. हरिएसिज १३. चित्तसंभूयं १४. उसयारिजं १५. सभिक्खुयं १६. समाहि ठाणाई १७. पाव समणिजं १८. संजाज १९. मिय चरिया २०. अणाह पव्वजा २१. समुहपालियं २२. रहणेमिजं २३. गोयमकेसिज २४. समिईओ २५. जण्णइज २६. सामायारी २७. खलुंकिजं २८. मोक्खमग्ग गई २९. अप्पमाओ ३०. तवो मग्गो ३१. चरणविही ३२. पमाय Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004182
Book TitleSamvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages458
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_samvayang
File Size10 MB
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