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________________ समवाय३६ १७९ downwwwwwwwwwwwwwerNITVNATHMAHamanarthakarnarou ठाणाई ३३. कम्मपयडी ३४. लेस्सज्झयणं ३५. अणगार मग्गे ३६. जीवाजीवविभत्ती य। चमरस्स णं असुरिंदस्स असुररण्णो सभा सुहम्मा छत्तीसं जोयणाई उड्ढे उच्चत्तेणं होत्था। समणस्स णं भगवओ महावीरस्स छत्तीसं अजाणं साहस्सीओ होत्था। चित्ता सोएसु मासेसु सइ छत्तीसंगुलियं सूरिए पोरिसीछायं णिव्वत्तइ ॥३६ ॥ कठिन शब्दार्थ - उत्तरज्झयणा - उत्तराध्ययन सूत्र के अध्ययन, चाउरंगिजं - चतुरंगीय, असंखयं- असंस्कृत, पुरिसविज्जा - पुरुषविद्या-क्षुल्लक निर्ग्रन्थ, उरब्मिजं - औरभ्रीय, दुमपत्तयं - द्रुमपत्रक, बहुसुयपूजा - बहुश्रुत पूजा, उसुयारिजं - इषुकारीय, पावसमणिजं - पाप श्रमणीय, मिय चरिया - मृगचर्या, अणाह पव्वजा - अनाथ प्रव्रज्या, जण्णइज्जं - यज्ञीय, खलुंकिजं - खलंकीय, पमाय ठाणाई - प्रमाद स्थान, लेसज्झयणंलेश्या अध्ययन, अणगार मग्गो - अनगार मार्ग, जीवाजीवविभत्ती - जीवाजीव विभक्ति। भावार्थ - उत्तराध्ययन सूत्र के छत्तीस अध्ययन कहे गये हैं। वे इस प्रकार हैं - १. विनयश्रुत-विनीत और अविनीत के लक्षण २. परीषह - बाईस परीषहों का कथन ३. चतुरङ्गीय - मनुष्यत्व, धर्म श्रवण, श्रद्धा और संयम में पुरुषार्थ, इन चार बातों का मिलना दुर्लभ ४. असंस्कृत - टूटा हुआ आयुष्य फिर जोड़ा नहीं जा सकता ५. अकाम मरणीय - अकाम मरण और सकाम मरण का कथन ६. पुरुष विद्या-क्षुल्लक निर्ग्रन्थ - बाह्य और आभ्यन्तर परिग्रह के त्याग का कथन ७. औरभ्रीय - भोगी पुरुष की बकरे के साथ तुलना ८. कापिलिक - कपिल मुनि का वृत्तान्त ९. नमिप्रव्रज्या - नमिराज की प्रव्रज्या और नमिराज के साथ इन्द्र का तात्त्विक प्रश्नोत्तर, १०. द्रुमपत्रक - वृक्ष के पके हुए पत्ते के साथ मनुष्य जीवन की तुलना ११. बहुश्रुतपूजा - बहुश्रुत साधु की १६ उपमाएं १२. हरिकेशीय - हरिकेशी मुनि का वर्णन १३. चित्तसंभूतीय-चित्त और सम्भूत इन दोनों भाइयों के पूर्व भव का वर्णन, चित्त मुनि का ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती को उपदेश, १४. इषुकारीय-इषुकार राजा का वर्णन १५. सभिक्खु-सच्चा साधु कौन है? इसका वर्णन। १६. समाधिस्थान - ब्रह्मचर्य और उसकी नव वाड़ों तथा दसवाँ कोट का वर्णन १७. पाप श्रमणीय - पापी श्रमण किसको कहते हैं ? इसका वर्णन। १८. संयतीय - कम्पिलपुर के राजा संजय का वर्णन १९. मृगचर्या-सुग्रीव नगर के बलभद्र राजा के तरुण युवराज मृगापुत्र का वर्णन। २०. अनाथ प्रव्रज्या या महानिर्ग्रन्थीय - अनाथी मुनि का वर्णन तथा अनाथ सनाथ का स्वरूप २१..समुद्रपालीय - समुद्रपाल मुनि का वर्णन २२. रथनेमीय - भगवान् अरिष्टनेमि और उनके छोटे भाई रथनेमि का तथा सती राजीमती का वर्णन। २३. गौतम केशी या केशी गौतमीय - केशी स्वामी और गौतम स्वामी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004182
Book TitleSamvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages458
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_samvayang
File Size10 MB
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