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समवाय ३५
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वासुदेव दत्त की और सातवें बलदेव नन्दन के शरीर की ऊंचाई पैंतीस धनुष की थी। पहले सौधर्म देवलोक में सुधर्मा सभा में माणवक नाम का चैत्य स्तम्भ है। वह ६० योजन का है, उसमें साढ़े बारह योजन ऊपर और साढे बाहर योजन नीचे छोड़ कर बीच में पैंतीस योजन में वज्रमय गोलवर्तुलाकार समुद्गक - पेटी के आकार है, उनमें तीर्थङ्कर भगवान् की अस्थियाँ रखी हुई हैं। दूसरी नरक में पचीस लाख नरकावास हैं और चौथी नरक में दस लाख नरकावास हैं, कुल मिलाकर दोनों नरकों में पैंतीस लाख नरकावास कहे गये हैं ॥ ३५ ॥ विवेचन सत्य वचन के ३५ अतिशय बताये गये हैं । उनके नाम और अर्थ टीका के अनुसार ऊपर भावार्थ में दिये गये हैं।
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यहाँ मूल में 'दत्त' नाम के सातवें वासुदेव और 'नन्दन' नाम के सातवें बलदेव के शरीर की ऊंचाई ३५ धनुष बतलाई गई है। किन्तु आवश्यक सूत्र में इनके शरीर की ऊंचाई २६ धनुष बतलाई है। यह बात सरलता से समझ में आ सकती है। क्योंकि कहा है
'अर मल्लि अंतरे दोण्णि केसवा पुरिस पुंडरीय दत्त ति' अर्थात् पुरुषपुंडरीक नामक छठा वासुदेव और दत्त नामक सातवाँ वासुदेव, भगवान् अरनाथ और मल्लिनाथ स्वामी के अन्तराल में हुए थे। छठे पुरुषपुंडरीक वासुदेव के शरीर की अवगाहना २९ धनुष थी और सातवें दत्त वासुदेव की अवगाहना २६ धनुष थी । यह बात सुघटित होती है क्योंकि भगवान् • अरनाथ की अवगाहना ३० धनुष और मल्लिनाथ स्वामी की अवगाहना २५ धनुष थी । - इसलिये इसके अन्तराल में होने वाले छठे और सातवें वासुदेवों की अवगाहना क्रमशः २९ और २६ धनुष होना संगत हो जाता है । परन्तु यहाँ पर सातवें दत्त वासुदेव और नन्दन बलदेव की अवगाहना ३५ धनुष कही गई है। यह बात तब हो सकती है जब कि इन को भगवान् कुन्थुनाथ के समय में माना जावे । परन्तु ऐसी मान्यता नहीं है। इसलिये दत्त वासुदेव और नन्दन बलदेव की अवगाहना ३५ धनुष की बतलाने वाले इस पाठ की संगति होना दुरवबोध है । ऐसा टीकाकार ने लिखा है।
सौधर्म कल्प आदि देवलोकों में प्रत्येक में पांच पांच सभाएं होती हैं । यथा सभा. २. उपपात सभा ३. अभिषेक सभा ४. अलंकार सभा ५. व्यवसाय सभा |
सुधर्मा सभा के मध्यभाग में मणिपीठिका के ऊपर साठ योजन का माणवक नामक चैत्यस्तम्भ है। उसके १२ ॥ योजन ऊपर और १२ ॥ योजन नीचे छोड़ कर बीच में ३५ योजन में वज्रमय गोलवर्तुलाकार समुद्गक (पेटी के आकार) हैं, उनमें 'जिण सकहाओ' रखी हुई है 'जिण सकहाओ' का अर्थ टीकाकार ने इस प्रकार किया है -
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१. सुधर्मा
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