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समवायांग सूत्र
वट्टइ। एगमेगे णं णक्खत्त मासे सत्तावीसाहिं राइंदियाहिं राइंदियग्गेणं पण्णत्ते। सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु विमाणपुढवी सत्तावीसं जोयणसयाई बाहल्लेणं पण्णत्ता। वेयग सम्मत्त बंधोवरयस्स णं मोहणिजस्स कम्मस्स सत्तावीसं उत्तर पयडीओ संतकम्मंसा पण्णत्ता। सावणसुद्ध सत्तमीसु णं सूरिए सत्तावीसंगुलियं पोरिसीच्छायं णिव्वत्तइत्ता णं दिवसखेत्तं णियट्टेमाणे रयणिखेत्तं अभिणिवट्टमाणे चारं चरइ। इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं णेरइयाणं सत्तावीसं पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता। अहे सत्तमाए पुढवीए अत्थेगइयाणं णेरइयाणं सत्तावीसं सागरोवमाइं.ठिई पण्णत्ता। असुरकुमाराणं देवाणं अत्थेगइयाणं सत्तावीसं पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता। सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु अत्थेगइयाणं देवाणं सत्तावीसं पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता। मज्झिम उवरिम गेविज्जयाणं देवाणं जहण्णेणं सत्तावीसं सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता। जे देवा मज्झिम मज्झिम गेविजय विमाणेसु देवत्ताए उववण्णा तेसिणं देवाणं उक्कोसेणं सत्तावीसं सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता। ते णं देवा सत्तावीसेहिं अद्धमासेहिं आणमंति वा पाणमंति वा ऊससंति वा णीससंति वा। तेसिणं देवाणं सत्तावीसेहिं वाससहस्सेहिं आहारट्टे समुप्पजइ। संतेगइया भवसिद्धिया जीवा जे सत्तावीसेहिं भवग्गहणेहिं सिज्झिस्संति बुज्झिस्संति जाव सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति ॥ २७ ॥
कठिन शब्दार्थ - वेरमणं - विरमण-निवृत्ति, णिग्गहे. - निग्रह, खमा - क्षमा, विरागया - विरागता-निर्लोभता, मणसमाहरणया (मनसमाधारणया) - मन समाहरणता (मनसमाधारणता) - मन की शुभ प्रवृत्ति, णाणसंपण्णया - ज्ञान संपन्नता, वेयणअहियासणया - वेदनातिसहनता (वेदनाधिसहनता) - वेदना को समभाव से सहन करना, मारणंतिय अहियासणया - मारणान्ति-कातिसहनता (मारणान्तिकाधिसहनता) - मृत्यु के समय होने वाले कष्टों को समभाव से सहन करना, संववहारे - लौकिक व्यवहार, वट्टइचलता है, राइंदियग्गेणं - रात्रिन्दियाअग्र-अहोरात्र की अपेक्षा से, वेयगसम्मत्तबंधोवरयस्सवेदक सम्यक्त्व बन्धोपरत-वेदक सम्यक्त्व के बन्ध से निवर्तने वाले जीव के, सावणसुद्धसत्तमीसु - श्रावण शुक्ला सप्तमी के दिन, दिवसखेत्तं - दिवसक्षेत्र-दिन के प्रकाश को, णियट्टेमाणे - घटाता हुआ, अभिणिवट्टमाणे - बढ़ाता हुआ।
भावार्थ - साधु के सत्ताईस गुण कहे गये हैं वे इस प्रकार हैं - १. प्राणातिपात विरमण - जीव हिंसा से निवृत्ति २. मृषावाद विरमण - झूठ से निवृत्ति ३. अदत्तादान
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