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समवाय २७
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नैरयिकों की स्थिति छब्बीस पल्योपम की कही गई है। महातमः प्रभा नामक सातवीं नरक में कितनेक नैरयिकों की स्थिति छब्बीस सागरोपम की कही गई है। असुरकुमार देवों में कितनेक देवों की स्थिति छब्बीस पल्योपम की कही गई है। सौधर्म और ईशान नामक पहले और दूसरे देवलोक में कितनेक देवों की स्थिति छब्बीस पल्योपम कही गई है। मध्यम मध्यम अर्थात् पांचवें ग्रैवेयक देवों की जघन्य स्थिति छब्बीस सागरोपम की कही गई है। जो देव मध्यम अधस्तन अर्थात् चौथे ग्रैवेयक विमानों में देव रूप से उत्पन्न होते हैं उन देवों की उत्कृष्ट स्थिति छब्बीस सागरोपम की कही गई है। वे देव छब्बीस पखवाड़ों से आभ्यन्तर श्वासोच्छ्वास लेते हैं और बाह्य श्वासोच्छ्वास लेते हैं। उन देवों को छब्बीस हजार वर्षों से आहार की इच्छा उत्पन्न होती है। कितनेक भव्य जीव ऐसे हैं जो छब्बीस भव करके सिद्ध होंगे, बुद्ध होंगे यावत् सब दुःखों का अन्त करेंगे ॥ २६ ॥ - विवेचन - छेद सूत्र चार हैं। यथा - दशाश्रुतस्कंध, बृहत्कल्प, व्यवहार सूत्र और निशीथ सूत्र । इनमें से दंशाश्रुतस्कन्ध की दस दशाएं हैं। बृहत्कल्प के छह उद्देशक हैं और व्यवहार सूत्र के दस उद्देशक हैं। ये सब मिलाकर २६ होते हैं। इसलिये इनके उद्देशन काल भी २६ होते हैं। किसी भी सूत्र को प्रारम्भ करना उद्देशन कहलाता है।
मोहनीय कर्म की २८ प्रकृतियाँ हैं। अभवसिद्धिक (अभवी) जीव को कभी भी सम्यक्त्व प्राप्त नहीं होती है। इसीलिये इसके सम्यक्त्व मोहनीय और मिश्र मोहनीय (सम्यक्त्व मिथ्यात्व मोहनीय) ये दो प्रकृतियाँ सत्ता में नहीं होती हैं।
...... सत्ताईसवां समवाय - सत्तावीसं अणगार गुणा पण्णत्ता तंजहा - पाणाइवायाओ वेरमणं (विरमणं), मुसावायाओ वेरमणं, अदिण्णादाणाओ वेरमणं, मेहुणाओ वेरमणं, परिग्गहाओ वेरमणं सोइंदिय णिग्गहे, चक्खुइंदिय णिग्गहे, घाणिंदिय णिग्गहे, जिब्भिंदिय णिग्गहे, फासिंदिय णिग्गहे, कोहविवेगे, माणविवेगे, मायाविवेगे, लोहविवेगे, भावसच्चे, करणसच्चे, जोगसच्चे, खमा, विरागया, मणसमाहरणया (मणसमाधारणया), वयसमाहरणया (वयसमाधारणया), कायसमाहरणया (कायसमाधारणया), णाणसंपण्णया, दंसणसंपण्णया, चरित्तसंपण्णया, वेयणअहियासणिया, मारणंतियअहियासणिया। जंबूहीवे दीवे अभिइवज्जेहिं सत्तावीसेहिं णक्खत्तेहिं संववहारे
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