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________________ १२४ समवायांग सूत्र छब्बीसवां समवाय छव्वीसं दसकप्पववहाराणं उद्देसणकाला पण्णत्ता तंजहा - दस दसाणं छ कप्पस्स दस ववहारस्स। अभवसिद्धियाणं जीवाणं मोहणिज्जस्स कम्मस्स छव्वीसं कम्मंसा संतकम्मा पण्णत्ता तंजहा - मिच्छत्तमोहणिज्जं सोलस कसाया इत्थीवेए पुरिसवेए णंपुंसगवेए हासं अरइ रइ भयं सोगं दुगुंछा। इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं णेरइयाणं छव्वीसं पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता। अहेसत्तमाए पुढवीए अत्थेगइयाणं णेरइयाणं छव्वीसं सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता। असुरकुमाराणं देवाणं अत्थेगइयाणं छव्वीसं पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता। सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु अत्थेगइयाणं देवाणं छव्वीसं पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता। मज्झिम मज्झिम गेविजयाणं देवाणं जहण्णेणं छव्वीसं सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता। जे देवा मज्झिम हेट्ठिम गेविजयविमाणेसु देवत्ताए उववण्णा, तेसिणं देवाणं उक्कोसेणं छव्वीसं सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता। ते णं देवा छव्वीसेहिं अद्धमासेहिं आणमंति वा पाणमंति वा ऊससंति वा णीससंति वा। तेसिणं देवाणं छव्वीसेहिं वाससहस्सेहिं आहारट्टे समुप्पज्जइ। संतेगइया भवसिद्धिया जीवा जे छव्वीसेहिं भवग्गहणेहि सिन्झिस्संति बुझिस्संति जाव सव्व दुक्खाणमंतं करिस्संति ।। २६ ॥ ___ कठिन शब्दार्थ - दसकप्पववहाराणं - दस कल्प व्यवहार के, उद्दसेणकाला - उद्देशनकाल, दसाणं - दशाश्रुतस्कंध के, कप्पस्स - बृहत्कल्प के, ववहारस्स - व्यवहार के, संतकम्मा - सत्ता में रहती है, मज्झिम हेट्ठिम गेविजय विमाणेसु - मध्यम अधस्तन अर्थात चौथे ग्रैवेयक विमानों में । भावार्थ - दश कल्प व्यवहार के छब्बीस उद्देशन काल कहे गये हैं। वे इस प्रकार हैंदशाश्रुतस्कन्ध के दस, बृहत्कल्प के छह और व्यवहार सूत्र के दस ये सब मिला कर छब्बीस . हुए। जिस श्रुतस्कन्ध में अथवा अध्ययन में जितने अध्ययन अथवा उद्देशक हों उसके उतने ही उद्देशनकाल कहे जाते हैं। अभवी जीवों के मोहनीय कर्म की छब्बीस प्रकृतियाँ सत्ता में रहती हैं। उनके नाम इस प्रकार हैं - १. मिथ्यात्व मोहनीय, २-१७ अनन्तानुबन्धी क्रोध आदि सोलह कषाय, १८. स्त्रीवेद १९. पुरुषवेद २०. नपुंसक वेद २१. हास्य २२. अरति २३. रति २४. भय २५. शोक २६. दुर्गुच्छा - जुगुप्सा। इस रत्नप्रभा नामक पहली नरक में कितनेक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004182
Book TitleSamvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages458
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_samvayang
File Size10 MB
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