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- केशि-गौतमीय - गौतम द्वारा समाधान 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 अब मेरा एक अन्य भी संशय-प्रश्न है। हे गौतम! मुझे उसके विषय में भी कुछ कहें अर्थात् उस संशय का भी निवारण कीजिए।
महा-उदगवेगेण, वुज्झमाणाण पाणिणं। सरणं गई पइट्ठा य, दीवं कं मण्णसि मुणी?॥६५॥
कठिन शब्दार्थ - महाउदगवेगेण - महान् जल प्रवाह के वेग से, वुज्झमाणाण -. बहते-डूबते, पाणिणं - प्राणियों के लिए, सरणं - शरण रूप, गई - गति रूप, पइट्ठा - प्रतिष्ठा रूप, दीवं - द्वीप, कं मण्णसि - किसे मानते हो?
भावार्थ - नौवां प्रश्न - केशीकुमार श्रमण पूछते हैं कि हे मुने! पानी के महान् प्रवाह द्वारा वाह्यमान - बहाये जाते हुए प्राणियों के लिए शरण रूप तथा गति रूप और प्रतिष्ठा रूप अर्थात् दुःख से पीड़ित प्राणी जिसका आश्रय ले कर सुख पूर्वक रह सकें, ऐसा द्वीप आप किसे मानते हैं? - अस्थि एगो महादीवो, वारिमज्झे महालओ।
महाउदगवेगस्स, गई तत्थ ण विज्जइ॥६६॥ - कठिन शब्दार्थ - महादीवो - महाद्वीप, वारिमझे - जल के मध्य, महालओ - विशाल, महाउदगवेगस्स - महान् उदक के वेग की, ण विज्जइ - नहीं होती।
भावार्थ - पानी (समुद्र) के मध्य में बहुत ऊँचा एवं विस्तृत एक महाद्वीप है उस पर पानी के महान् प्रवाह की गति नहीं है अर्थात् उस महाद्वीप में जल का प्रवेश नहीं हो सकता।
गौतम द्वारा समाधान दीवे य इइ के वुत्ते? केसी गोयममब्बवी। केसिमेवं बुवंतं तु, गोयमो इणमब्बवी॥६७॥
भावार्थ - केशीकुमार श्रमण गौतमस्वामी से इस प्रकार पूछने लगे कि वह द्वीप कौन-सा कहा गया है? उपरोक्त प्रकार से प्रश्न करते हुए केशीकुमार श्रमण से गौतमस्वामी इस प्रकार कहने लगे।
जरामरणवेगेणं, वुज्झमाणाण पाणिणं। धम्मो दीवो पइट्ठा य, गई सरणमुत्तमं॥६॥
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