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उत्तराध्ययन सूत्र - तेईसवाँ अध्ययन 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000
कठिन शब्दार्थ - मग्गेण - मार्ग से, उम्मग्गपट्ठिया - उन्मार्ग की ओर प्रयाण करने वाले, वेइया - जान लिया है।
भावार्थ - गौतमस्वामी कहते हैं कि जो सुमार्ग से जाते हैं और जो उन्मार्ग में प्रवृत्ति करते हैं उन सब को मैंने जान लिया है इसलिए हे मुने! मैं सुमार्ग से नष्ट-भ्रष्ट नहीं होता हूँ।
मग्गे य इइ के वुत्ते, केसी गोयममब्बवी। केसिमेवं बुवंतं तु, गोयमो इणमब्बवी॥२॥
भावार्थ - केशीकुमार श्रमण गौतमस्वामी से इस प्रकार पूछने लगे कि वह सुमार्ग और कुमार्ग कौन-सा कहा गया है? इस प्रकार प्रश्न करते हुए केशीकुमार श्रमण से गौतमस्वामी इस प्रकार कहने लगे।
गौतमस्वामी का समाधान कुप्पवयण-पासंडी, सव्वे उम्मग्ग-पट्टिया। सम्मग्गं तु जिणक्खायं, एस मग्गे हि उत्तमे॥६३॥
कठिन शब्दार्थ - कुप्पवयणपासंडी - कुप्रवचन को मानने वाले पाषण्डी, सम्मग्गं - सन्मार्ग, जिणक्खायं - जिनेन्द्र कथित, मग्गे - मार्ग, उत्तमे - उत्तम।।
भावार्थ - जो कुप्रवचन को मानने वाले पाषण्डी (व्रतधारी लोग) लोग हैं वे सभी उन्मार्ग में प्रवृत्ति करने वाले हैं। जिनेन्द्र भगवान् द्वारा प्ररूपित मार्ग ही सन्मार्ग है। इसलिए यह मार्ग ही उत्तम है।
विवेचन - जितने भी कुप्रवचन मतवादी अर्थात् जिनेन्द्र प्रवचन पर श्रद्धा न रखने वाले एकान्तवादी व्रती लोग हैं, वे सब उन्मार्ग गामी हैं, उनका एकान्तवादी कथन उन्मार्ग है। सन्मार्ग तो रागद्वेष आदि दोषों से रहित यथार्थ वक्ता आप्तं पुरुष - जिनेन्द्र देव द्वारा कथित है।
-- केशी स्वामी की नौवीं जिज्ञासा साहु गोयम! पण्णा ते, छिण्णो मे संसओ इमो। अण्णोऽवि संसओ मज्झं, तं मे कहसु गोयमा! ॥१४॥ भावार्थ - हे गौतम! तुम्हारी प्रज्ञा श्रेष्ठ है। तुमने मेरा यह संशय भी दूर कर दिया है।
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