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केशि-गौतमीय - गौतम स्वामी का समाधान 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000
केशीश्वमण की चतुर्थ जिज्ञासा साहु गोयम! पण्णा ते, छिण्णो मे संसओ इमो। अण्णोऽवि संसओ मज्झं, तं मे कहसु गोयमा॥३६॥
भावार्थ - हे गौतम! तुम्हारी प्रज्ञा श्रेष्ठ है। तुमने मेरा यह संशय भी दूर कर दिया है। अब मेरा एक अन्य भी संशय-प्रश्न है। हे गौतम! मुझे उसके विषय में भी कुछ कहें अर्थात् मेरा जो संशय है उसे भी दूर कीजिए।
दीसंति बहवे लोए, पासबद्धा सरीरिणो। मुक्क-पासो लहुन्भूओ, कहं तं विहरसि मुणी!॥४०॥
कठिन शब्दार्थ - दीसंति - दिखते हैं, बहवे - बहुत से, लोए - लोक में, पासबद्धापाश से बद्ध, सरीरिणो - शरीरधारी, मुक्कपासो - पाश (बंधन) से मुक्त, लहुन्भूओ - लघुभूत - प्रतिबन्ध रहित हल्के, कहं - कैसे, विहरसि - विचरते हैं। ... भावार्थ - चौथा प्रश्न - केशीकुमार श्रमण पूछते हैं कि लोक में बहुत से प्राणी पाश में बन्धे हुए दिखाई देते हैं किन्तु हे मुने! आप बन्धन से मुक्त हो कर तथा वायु के समान लघुभूत (हलके) हो कर कैसे विचरते हैं?
गौतमस्वामी का समाधान ते पासे सव्वसो छित्ता, णिहंतूण उवायओ। मुक्कपासो लहुन्भूओ, विहरामि अहं मुणी!॥४१॥
कठिन शब्दार्थ - ते - उन, पासे - पाशों (बंधनों) को, सव्वसो - सब प्रकार से, छित्ता - छेदन कर, णिहंतूण - नष्ट करके, उवायओ - उपाय द्वारा।
भावार्थ - गौतमस्वामी कहते हैं कि हे मुने! उपाय द्वारा उन पाशों (बन्धनों) को सर्वथा प्रकार से छेदन (काट) कर एवं उनका सर्वथा नाश कर के मैं मुक्त पाश - बन्धन-रहित हो कर तथा अप्रतिबद्धविहारी होने से वायु के समान लघुभूत हो कर विचरता हूँ।
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