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उत्तराध्ययन सूत्र - तेईसवाँ अध्ययन wwwwwwwwwwwwwwwooooooooooooooooooooooooooooo .
गौतमस्वामी का समाधान एगे जिए जिया पंच, पंच जिए जिया दस। दसहा उ जिणित्ताणं, सव्व-सत्तू जिणामहं॥३६॥
कठिन शब्दार्थ - एगे - एक के, जिए - जीतने पर, पंच - पांच, जिया - जीत लिये गये, जिणित्ताणं - जीत कर, सव्वसत्तू - सब शत्रुओं को, जिणामहं - मैंने जीत लिया है। .
भावार्थ - एक के जीतने पर पाँच जीते गये और पाँचों को जीतने पर दस जीते गये और दसों शत्रुओं को जीत कर मैंने सभी शत्रुओं को जीत लिया है।
सत्तू य इइ के वुत्ते? केसी गोयममब्बवी। तओ केसिं बुवंतं तु, गोयमो इणमब्बवी॥३७॥ कठिन शब्दार्थ - सत्तू - शत्रु, वुत्ते - कहे गये हैं। .
भावार्थ - उपरोक्त विषय को स्पष्ट करने के लिये केशीकुमार श्रमण गौतमस्वामी से इस प्रकार पूछने लगे कि वे शत्रु कौन-से कहे गये हैं? इसके पश्चात् उक्त प्रकार से प्रश्न करते हुए केशीकुमार श्रमण को गौतमस्वामी इस प्रकार कहने लगे।
एगप्पा अजिए सत्तू, कसाया इंदियाणि य। ते जिणित्तु जहाणायं, विहरामि अहं मुणी! ॥३८॥ .
कठिन शब्दार्थ - एगप्पा - एक आत्मा, अजिए - नहीं जीता हुआ, कसाया - कषाय, इंदियाणि - इन्द्रियां, जहाणायं - यथा न्याय - न्याय (नीति) के अनुसार।
भावार्थ - गौतमस्वामी कहते हैं कि हे मुने! वश में न किया हुआ एक आत्मा ही शत्रु है और कषाय तथा इन्द्रियाँ भी शत्रु हैं उनको न्यायपूर्वक जीत कर मैं विचरता हूँ।
विवेचन - इस गाथा में दिये गये उत्तर से ऊपर की गाथा का स्पष्टीकरण हो जाता है अर्थात् वश में न किया हुआ आत्मा ही शत्रु है। उस एक शत्रु को जीत लेने पर पांच (चार कषाय और एक आत्मा) शत्रु जीत लिये जाते हैं और पांच को जीत लेने पर दस (पांच इन्द्रियाँ, चार कषाय और एक आत्मा) शत्रु जीत लिए जाते हैं। इन को जीत लेने पर नोकषाय आदि समस्त शत्रु जीत लिए जाते हैं।
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