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उत्तराध्ययन सूत्र - तेईसवाँ अध्ययन . 0000000000000000000000000000000000000000
केशी स्वामी की शंका पासा य इइ के वुत्ता? केसी गोयममब्बवी। केसिमेवं बुवंतं तु, गोयमो इणमब्बवी॥४२॥
भावार्थ - उपरोक्त विषय को स्पष्ट करने के लिए केशीकुमार श्रमण गौतमस्वामी से इस प्रकार पूछने लगे कि वे पाश कौन से कहे गये हैं? इस प्रकार प्रश्न करते हुए केशीकुमार श्रमण को गौतमस्वामी इस प्रकार कहने लगे।
- शंका का निवारण रागद्दोसादओ तिव्वा, णेहपासा भयंकरा। ते छिंदित्तु जहाणायं, विहरामि जहक्कमं॥४३॥
कठिन शब्दार्थ - रागद्दोसादओ - रागद्वेष आदि, तिव्वा - तीव्र, णेहपासा - स्नेह । पाश, भयंकरा - भयंकर, छिंदित्तु - छेदन करके, जहाणायं - यथा न्याय, विहरामि - विचरण करता हूं, जहक्कम - यथाक्रम से।
भावार्थ - गौतमस्वामी कहते हैं कि राग-द्वेष आदि तथा मोह और तीव्र धन-धान्य-पुत्रकलत्र आदि के स्नेह रूपी पाश बड़े भयंकर हैं उनका यथान्याय छेदन करके मैं यथाक्रम अर्थात् : शान्तिपूर्वक विचरता हूँ।
विवेचन - केशीस्वामी ने पूछा कि हे गौतम! संसारी जीव भव पाश में बंधे हुए दुःख पा रहे हैं जबकि आप उस पाश से मुक्त होकर, वायु की तरह लघुभूत बन कर विचरण कर रहे हैं इसका क्या रहस्य है? ___ गौतमस्वामी ने केशीस्वामी की शंका का समाधान करते हुए फरमाया कि - रागद्वेष मोह आदि जो भयंकर बंधन हैं उनको मैंने यथान्याय - वीतरागोक्त उपदेश से तप त्याग के द्वारा समूल काट दिया है अतः मैं लघुभूत होकर सुखपूर्वक संसार में विचरण करता हूं।
केशीश्वमण की पांचवीं जिज्ञासा . साहु गोयम! पण्णा ते, छिण्णो मे संसओ इमो। अण्णोऽवि संसओ मज्झं, तं मे कहसु गोयमा! ॥४४॥
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