________________
४४
- उत्तराध्ययन सूत्र - तेईसवाँ अध्ययन 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000
तण पणगं पण्णत्तं, जिणेहिं कम्महगंठिमहणेहिं। साली १ वीही २ कोद्दव ३ रालग ४ रणेतणा ५ पंच॥ -
- अष्ट विध कर्मों की ग्रन्थि का भेदन करने वाले जिनेश्वरों ने पांच प्रकार के निर्बीज तृण साधुओं के आसन के योग्य बताएं हैं - १. शाली - कमलशाली आदि विशिष्ट चावलों का पराल २. ब्रीहिक - साठी चावल आदि का पलाल ३. कोद्दव - कोदों धान्य का पलाल ४. रालक - कंगु (कागणी) का पलाल - ये चार प्रकार के पलाल और पांचवां अरण्यतृण अर्थात् श्यामाक - सामा चावल आदि का पलाल। उपरोक्त गाथा में पांचवां दर्भ आदि निर्जीव तृण बताया गया है।
केसीकुमार-समणे, गोयमे य महायसे। उभओ णिसण्णा सोहंति, चंदसूरसमप्पभा॥१८॥
कठिन शब्दार्थ - महायसे - महायशस्वी, णिसण्णा - बैठे हुए, सोहंति - शोभित होते हैं, चंदसूरसमप्पभा - चन्द्र और सूर्य के समान कांति वाले।
भावार्थ - चन्द्र और सूर्य के समान कान्ति वाले महायशस्वी केशी कुमार श्रमण और गौतमस्वामी दोनों आसन पर बैठे हुए चन्द्रमा और सूर्य के समान शोभित हो रहे थे।
विवेचन - जैसे चन्द्र और सूर्य अपनी कांति से संसार को शीतलता और तेजस्विता प्रदान करते हैं उसी प्रकार ये दोनों मुनीश्वर अपने शांति और तेजस्विता आदि सद्गुणों से भव्य जीवों को आह्लादित और उपकृत कर रहे थे।
समागया बहू तत्थ, पासंडा कोउगा मिया। गिहत्थाण अणेगाओ, साहस्सीओ समागया॥१६॥
कठिन शब्दार्थ - समागया - आए, पासंडा - पाषण्ड - परिव्राजक आदि अन्य दर्शनी, कोउगा - कुतूहली, मिया - मृग के समान, गिहत्थाण - गृहस्थों के, अणेगाओ - अनेक, साहस्सीओ - सहस्र - हजारों।
भावार्थ - उन दोनों मुनियों की चर्चा-वार्ता को सुनने के लिए गृहस्थों के अनेक सहस्रहजारों अर्थात् हजारों गृहस्थ वहाँ तिन्दुक वन में आये और बहुत-से मृग के समान अज्ञानी पाखंडी लोग और कुतूहली लोग भी वहाँ आकर इकट्ठे हुए।
विवेचन - पासंडा - ‘पाषण्ड' शब्द का अर्थ यहाँ घृणावाचक पाखण्डी (ढोंगी, धर्मध्वजी)
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org