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केशि-गौतमीय - केशी-गौतम मिलन 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000
विवेचन - गौतमस्वामी यद्यपि केशी श्रमण से वय और ज्ञान में ज्येष्ठ-श्रेष्ठ, चार ज्ञान के धनी एवं सर्वाक्षर-सन्निपाती थे तथापि गौतमस्वामी प्रतिरूपज्ञ थे अर्थात् यथोचित विनय व्यवहार के ज्ञाता थे। वे विनीत और विचारशील थे अतः उन्होंने सोचा - केशीकुमार श्रमण तेइसवें तीर्थंकर भगवान् पार्श्वनाथ की शिष्य परम्परा के हैं अतः भगवान् पार्श्वनाथ का कुल ज्येष्ठ वृद्ध (बड़ा) है और केशीकुमार उनकी शिष्य परम्परा में होने से हमारे ज्येष्ठ हैं अतः मुझे ही उनके पास जाना चाहिये। यह विचार करके गौतमस्वामी एकाकी नहीं किंतु अपने शिष्य समुदाय को साथ लेकर श्रमण केशीकुमार से मिलने की इच्छा से तिंदुक उद्यान में पहुंचे।
केसीकुमार-समणे, गोयमं दिस्समागयं। पडिरूवं पडिवत्तिं, सम्मं संपडिवज्जइ॥१६॥
कठिन शब्दार्थ - पडिरूवं -/ प्रतिरूप, पडिवत्तिं - प्रतिपत्ति, सम्मं - सम्यक्, संपडिवज्जइ - ग्रहण करते हैं।
भावार्थ - केशी कुमार श्रमण गौतमस्वामी को आते हुए देख कर बहुमान भक्ति के साथ प्रतिरूप-उनके योग्य प्रतिपत्ति - सत्कार-सम्मान सम्यक् प्रकार से करने लगे। .
पलालं फासुयं तत्थ, पंचमं कुसतणाणि य। गोयमस्स णिसेज्जाए, खिप्पं संपणामए॥१७॥
कठिन शब्दार्थ - पलालं - पलाल, फासुयं - प्रासुक, पंचमं - पांचवां, कुसतणाणि- . डाभ के तृण, णिसेज्जाए - बैठने के लिये, खिप्पं - शीघ्र, संपणामए - दिये।
भावार्थ - केशी कुमार श्रमण ने वहाँ गौतमस्वामी के बैठने के लिए प्रासुक पलाल अर्थात् शाली, ब्रीहि, कोद्रव, राल यह चार और पाँचवां डाभ के तृण, ये पाँच प्रकार का पलाल दिये।
विवेचन - केशीकुमार श्रमण ने जब देखा कि भगवान् महावीर स्वामी के पट्टधर शिष्य गणधर गौतमस्वामी अपने शिष्य परिवार सहित इधर ही आ रहे हैं तब उन्होंने अभ्युत्थान आदि पूर्वक बड़े प्रेम से उनका स्वागत किया अर्थात् योग्य पुरुषों का योग्य पुरुष जिस प्रकार सम्मान करते हैं उसी प्रकार उन्होंने गौतमस्वामी का सम्मान किया और उन्हें बैठने के लिए श्रमणोचित आसन हेतु पांच प्रकार का पराल (घास) प्रदान किया।
प्रवचन सारोद्धार एवं उत्तराध्ययन टीका के अनुसार पांच प्रकार के तृण इस प्रकार कहे हैं
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