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उत्तराध्ययन सूत्र - तेईसवाँ अध्ययन
४. भगवान् पार्श्वनाथ का सचेलक धर्म और भगवान् महावीर स्वामी का अचेलक धर्म, एक ही लक्ष की प्राप्ति के लिए प्रवृत्त इन दोनों में अन्तर क्यों ?
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यहाँ पर 'अचेलक' शब्द का नञ् अल्पार्थ का वाचक है उसका अर्थ है - मानोपेत श्वेत वस्त्र, अथवा कुत्सित - जीर्ण श्वेत वस्त्र तथा जिनकल्प की अपेक्षा अचेलक का अर्थ है - वस्त्र का अभाव अर्थात् वस्त्र रहित होना ।
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भगवान्' पार्श्वनाथ द्वारा यह सान्तरोत्तर धर्म प्रतिपादित है। इसमें 'सांतर' और 'उत्तर' ये दो शब्द हैं। जिनके अनेक अर्थ विभिन्न आगम वृत्तियों में मिलते हैं । बृहद्वृत्तिकार के अनुसारसान्तर का अर्थ - विशिष्ट अंतर यानी प्रधान सहित है और उत्तर का अर्थ है - नाना वर्ण के • बहुमूल्य और प्रलम्ब वस्त्र से सहित ।
केशी - गौतम मिलन
अह ते तत्थ सीसाणं, विण्णाय पवितक्कियं । समागमे कयमई, उभओ केसीगोयमा ॥ १४ ॥ कठिन शब्दार्थ - सीसाणं - शिष्यों की, विण्णाय जान कर, पवितक्कियं प्रवितर्कित - शंका युक्त विचार विमर्श को, समागमे कयमई परस्पर समागम की इच्छा की। भावार्थ - इसके बाद वहाँ पर अपने-अपने शिष्यों की प्रवितर्कित - तर्क रूप शंका को उसकी निवृत्ति के लिए उन कुमार श्रमण केशी स्वामी और गौतमस्वामी दोनों महापुरुषों ने एक स्थान पर मिलने का विचार किया ।
जान
कर
गोयमो पडिरूवण्णू, सीससंघसमाउले ।
जे कुलमवेक्खतो, तिंदुयं वणमागओ ॥ १५ ॥
कठिन शब्दार्थ - पडिरूवण्णू - प्रतिरूपज्ञ - यथोचित विनय व्यवहार के ज्ञाता, जेज्येष्ठ, कुलं- कुल को, अवेक्खंतो- जान कर, तिंदुयं वणं- तिन्दुक वन में, आगओ - आए । भावार्थ केशी कुमार श्रमण तेवीसवें तीर्थंकर भगवान् पार्श्वनाथ के संतानिये ( शिष्यानुशिष्य) थे, इसलिये उनके कुल को ज्येष्ठ (बड़ा ) मान कर प्रतिरूपज्ञ - विनय-धर्म के ज्ञाता गौतमस्वामी अपने शिष्य-समुदाय सहित तिंदुक उद्यान में जहाँ केशीकुमार श्रमण ठहरे हुए थे, वहाँ आये।
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