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केशि-गौतमीय - केशीस्वामी की प्रथम जिज्ञासा
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देव-दाणव-गंधव्वा, जक्ख-रक्खस्स-किण्णरा। अदिस्साणं च भूयाणं, आसी तत्थ समागमो॥२०॥
कठिन शब्दार्थ - देवदाणवगंधव्वा - देव, दानव, गंधर्व, जक्खरक्खस्स किण्णरा - यक्ष, राक्षस, किन्नर, अदिस्साणं - अदृश्य, भूयाणं - भूतों का।
भावार्थ - ज्योतिषी और वैमानिक देव, दानव (भवनपति, गन्धर्व) यक्ष, राक्षस और किन्नर आदि वाणव्यंतर देव भी वहाँ आये और दिखाई न देने वाले वाणव्यंतर जाति के भूतों का भी वहाँ समागम था अर्थात् अदृश्य भूत भी वहाँ आये थे।
केशी स्वामी की प्रथम जिज्ञासा पुच्छामि ते महाभाग! केसी गोयममब्बवी। तओ केसिं बुवंतं तु, गोयमो इणमब्बवी॥२१॥
कठिन शब्दार्थ - पुच्छामि - पूछना चाहता हूं, महाभाग - हे भाग्यशाली! अब्बवी - कहा, केसिं बुवंतं - केशी के यह कहने पर।
भावार्थ - केशी कुमार श्रमण ने गौतमस्वामी से कहा कि हे महाभाग! मैं आपसे कुछ पूछना चाहता हूँ तब इस प्रकार बोलते हुए केशी कुमार श्रमण को गौतमस्वामी इस प्रकार कहने लगे। - पुच्छ भंते! जहिच्छं ते, केसिं गोयम-मब्बवी। तओ केसी अणुण्णाए, गोयमं इणमब्बवी॥२२॥
कठिन शब्दार्थ - पुच्छ - पूछिए, जहिच्छं - जैसी इच्छा हो, अणुण्णाए - अनुज्ञा पाकर, इणं - इस प्रकार, अब्बवी - पूछा।
भावार्थ - गौतमस्वामी ने केशीकुमार श्रमण को कहा कि हे भगवन्! आपकी जैसी इच्छा हो वैसा प्रश्न करो। इसके बाद गौतमस्वामी की अनुमति प्राप्त होने पर केशीकुमार श्रमण गौतमस्वामी से इस प्रकार पूछने लगे।
चाउजामो य जो धम्मो, जो इमो पंचसिक्खिओ। ... देसिओ वद्धमाणेण, पासेण य महामुणी॥२३॥
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