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रथनेमीय - रैवतक पर्वत की गुफा में
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कठिन शब्दार्थ - पव्वइया संती - प्रव्रजित होकर, पव्वावेसी - प्रव्रजित कराया, सयणं - स्वजनों को, परियणं - परिजनों को, सीलवंता - शीलवती, बहुस्सुया - बहुश्रुता।
. भावार्थ - शीलवती बहुश्रुता उस राजीमती ने दीक्षित होकर द्वारिका पुरी में बहुत से स्वजन और परिजन की स्त्रियों को दीक्षा दी।
विवेचन - राजीमती के लिए 'बहुस्सुया' विशेषण देने का अभिप्राय यह है कि गृहवास में भी उसने बहुत श्रुत का अभ्यास किया था। इस पाठ से यह स्पष्ट होता है कि - गृहस्थ भी श्रुतशास्त्रों का पठन-पाठन एवं अभ्यास कर सकते हैं।
रैवतक पर्वत की गुफा में गिरि रेवतयं जंती, वासेणुल्ला उ अंतरा। . वासंते अंधयारम्मि, अंतो लयणस्स सा ठिया॥३३॥
कठिन शब्दार्थ - गिरि रेवतयं - रैवतक पर्वत पर, जंती - जाती हुई, वासेणुल्ला - वर्षा से भीग गई, वासंते - वर्षा के अंत में, अंधयारम्मि - अंधकार छा जाने पर, अंतो - अंदर, लयणस्स - गुफा के। ... भावार्थ - जिन्हें राजीमती ने दीक्षा दी थी उन सभी साध्वियों को साथ ले कर रैवतकगिरि पर विराजमान भगवान् नेमिनाथ को वन्दना करने चली रैवतक पर्वत पर जाती हुई वह बीच रास्ते में ही वर्षा से भीग गई और उस घनघोर वर्षा के कारण साथ वाली दूसरी साध्वियाँ इधरउधर बिखर गई तब वह राजीमती वर्षा के होते हुए अन्धकार युक्त एक पर्वत की गुफा में जाकर ठहर गई।
चीवराणि विसारंती, जहाजायत्ति पासिया। रहणेमी भग्गचित्तो, पच्छा दिट्ठो य तीइ वि॥३४॥
कठिन शब्दार्थ - चीवराणि - कपड़ों को, विसारंती - फैलाती हुई, जहाजायत्ति - यथाजात-नग्न रूप में, पासिया - देख कर, भग्गचित्तो - भग्नचित्त (विचलित मन वाला), पच्छा - पीछे, तीइ वि - राजीमती ने। .
भावार्थ - भीगे हुए कपड़ों को सूखाती हुई वह राजीमती यथाजाता (जन्म के समय बालक जैसा निर्वस्त्र होता है वैसी ही निर्वस्त्र) हो गई। उसे निर्वस्त्र देख कर उस गुफा में पहले
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