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उत्तराध्ययन सूत्र - बाईसवाँ अध्ययन
सो कुंडलाण जुयलं, सुत्तगं च महायसो ।
आभरणाणि य सव्वाणि, सारहिस्स पणामए ॥ २० ॥
कठिन शब्दार्थ - कुंडलाण जुयलं - कुण्डलों की जोड़ी, सुत्तगं करधनी, महायसो - महायशस्वी, आभरणाणि - आभूषण, सारहिस्स दे दिये।
आभूषण त्याग
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भावार्थ महायशस्वी उस भगवान् अरिष्टनेमि ने कुण्डलों की जोड़ी और कन्दोरा तथा सभी आभूषण सारथी को प्रदान कर दिये ।
विवेचन - भगवान् अरिष्टनेमि ने उन जीवों को बंधन मुक्त करवा कर अभयदान दिया । यह अभयदान और अनुकम्पा ( जीव दया - रक्षा) का उत्कृष्ट उदाहरण है। प्रश्न व्याकरण सूत्र के प्रथम संवर द्वार में कहा है। "सव्व जग जीव रक्खण दयट्टयाए पावयणं भगवया सुकहियं" अर्थात् जगत् के सब जीवों की रक्षा रूप दया के लिए तीर्थंकर भगवान् ने प्रवचन फरमाया है। दया और दान तो जैन धर्म का मूल सिद्धान्त है।
अभिनिष्क्रमण और दीक्षा - महोत्सव
मणपरिणामे य कए, देवा य जहोइयं समोइण्णा । सव्विड्डीइ सपरिसा, णिक्खमणं तस्स काउं जे ॥२१॥ कठिन शब्दार्थ - मणपरिणामे
समोइण्णा - अवतीर्ण हुए, सव्विड्डीइ अभिनिष्क्रमण, काउं - करने के लिए।
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सूत्रक - कन्दोरा सारथी को, पणामए
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मन में परिणाम, कए - किया, जहोइयं यथोचित, समस्त ऋद्धि, सपरिसा परिषद् के साथ, णिक्खमणं
भावार्थ - मरते हुए प्राणियों पर अनुकम्पा कर के उन्हें बन्धन से मुक्त करवा कर तथा सारथी को पुरस्कृत कर भगवान् नेमिनाथ द्वारिका में लौट आये। तत्पश्चात् उन्होंने दीक्षा अंगीकार करने के लिए मन में विचार किया तब उनका निष्क्रमण (दीक्षा - महोत्सव) करने के
* टीका- 'एवं च विदितभगवदाकूतेन सारथिना मोचितेषु सवेषु परितोषितोऽसो यत्कृतवास्तवाहअर्थात् भगवान् नेमिनाथ के अभिप्राय को समझ कर सारथी ने जब उन प्राणियों को बंधन से मुक्त कर दिया तब प्रसन्न होकर कुमार अरिष्टनेमि ने अपने आभूषण प्रदान कर दिये ।
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