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रथनेमीय - अरिष्टनेमि का चिंतन
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कठिन शब्दार्थ - भणइ - बोला, भद्दा - भद्र, विवाहकजमि - विवाह कार्य में, भोयावेउं - भोजन कराने के लिए। ___भावार्थ - इसके बाद भगवान् के प्रश्न को सुन कर सारथी कहने लगा कि हे भगवन्! इन सभी भद्र एवं निर्दोष प्राणियों को आपके विवाह में आये हुए बहुत-से मांसभोजी मनुष्यों को भोजन कराने के लिए यहाँ बन्द कर रखा है।
अरिष्टनेमि का चिंतन सोऊण तस्स वयणं, बहुपाणिविणासणं।
चिंतेड़ से महापण्णे, साणुक्कोसे जिएहि उ॥१८॥ .. कठिन शब्दार्थ - बहुपाणिविणासणं - बहुत से प्राणियों के विनाश के लिए, चिंतेइ - चिंतन करते हैं, महापण्णे - महाप्रज्ञ, साणुक्कोसे - जीवों के प्रति सदय होकर, जिएहि - जीवों के विषय में।
भावार्थ - बहुत से प्राणियों का विनाश रूप अर्थ को बतलाने वाले उस सारथी के वचन को सुनकर जीवों के विषय में करुणाभाव सहित (प्राणियों पर दया युक्त) होकर वे महा प्रज्ञावान्. भगवान् नेमिनाथ विचार करने लगे।
जइ मज्झ कारणा एए, हम्मंति.सुबह जिया। ण मे एयं तु णिस्सेसं, परलोगे भविस्सइ॥१६॥
कठिन शब्दार्थ - हम्मति - मारे जाते हैं, सुबहू - बहुत से, परलोगे - परलोक में, णिस्सेसं - कल्याणकारी।
भावार्थ - यदि मेरे कारण ये बहुत-से जीव मारे जाएंगे तो यह कार्य मेरे लिए परलोक में कल्याणकारी नहीं होगा।
- विवेचन - भगवान् अरिष्टनेमि तीर्थंकर हैं इसलिए इसी भव में मोक्ष जाने वाले हैं। फिर जो यह कथन किया गया कि यह हिंसा परलोक में मेरे लिए कल्याणकारी नहीं होगी। ऐसा कथन पूर्व भवों के अभ्यास के कारण कर दिया गया हैं। अथवा हिंसा कल्याणकारी नहीं होती हैं, संसारी प्राणियों को यह बोध देने के लिए ऐसा कथन किया गया है।
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