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जीवाजीव विभक्ति - देवों का वर्णन - वैमानिक देव
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प्रश्न - ज्योतिषी देवों का स्थान कहाँ है?
उत्तर - मध्यलोक में मेरुपर्वत के समभूमि भाग से ऊपर ७६० योजन से लेकर ६०० योजन तक अर्थात् ११० योजन में ज्योतिषी देवों के विमान हैं। समभूमि से ८०० योजन ऊपर सूर्य का विमान है। ८८० योजन ऊपर चन्द्र का विमान है। उनसे ऊपर २० योजन में ग्रह, नक्षत्र और तारा है। वैसे तारा तो ७६० से लेकर ६०० योजन तक सर्वत्र फैले हुए हैं।
४ वैमानिक देव वेमाणिया उ जे देवा, दुविहा ते वियाहिया। कप्पोवगा य बोधव्वा, कप्पाईया तहेव य॥२१२॥ कठिन शब्दार्थ - कप्पोवगा - कल्पोपपन्नक, कप्पाईया - कल्पातीत।
भावार्थ - जो वैमानिक देव हैं, वे दो प्रकार के कहे गये हैं। वे इस प्रकार जानने चाहिए - कल्पोपपन्नक - कल्पोपपन्न और कल्पातीत।
विवेचन - प्रश्न - वैमानिक देव किसे कहते हैं? । ___ उत्तर - जो देव विमानों में रहते हैं, उन्हें वैमानिक देव कहते हैं। सभी विमान रत्नों के बने हुए हैं, स्वच्छ, कोमल, स्निग्ध, घिसकर चिकने किये हुए, साफ किये हुए, रज रहित, निर्मल, निष्पंक, बिना आवरण की दीप्ति वाले, प्रभा सहित, शोभा सहित, उद्योत सहित, चित्त को प्रसन्न करने वाले, दर्शनीय (देखने योग्य), अभिरूप (जिनको देखते हुए आंखें थके नहीं)
और प्रतिरूप अर्थात् जितनी बार देखे उतनी ही बार नये-नये दिखाई देने वाले। ___(शास्त्रों में 'अच्छा, सहा से लेकर प्रतिरूप' तक १६ विशेषण शाश्वत वस्तुओं के दिये जाते हैं। अशाश्वत वस्तु के लिए 'पासाईया, दरिसणिजा, अभिरूवा, पडिरूवा' ये चार विशेषण दिये जाते हैं। जैसे कि - द्वारिका राजगृह के लिये दिये गये हैं।)
प्रश्न - वैमानिक देवों के कितने भेद हैं? उत्तर - संक्षेप में वैमानिक देवों के दो भेद हैं - कल्पोपपन्न और कल्पातीत। प्रश्न - कल्पोपपन्न किसे कहते हैं?
उत्तर - यहाँ कल्प का अर्थ है - मर्यादा अर्थात् जिन देवों में स्वामी, सेवक, छोटा, बड़ा, इन्द्र, सामानिक आदि की मर्यादा बन्धी हुई हो, उन्हें कल्पोपपन्न कहते हैं।
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