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उत्तराध्ययन सूत्र - छतीसवाँ अध्ययन
प्रश्न - कल्पातीत किसे कहते हैं?
उत्तर - जिन देवों में स्वामी, सेवक, छोटा, बड़ा, इन्द्र, सामानिक आदि की मर्यादा नहीं हैं किन्तु सभी देव अपने आपको अहमिन्द्र मानते हैं, उनको कल्पातीत कहते हैं।
प्रश्न - इन्द्र सामानिक आदि कितने भेद हैं? उत्तर - तत्त्वार्थ सूत्र के चौथे अध्याय में देवों के दस प्रकार बतलाये हैं। यथा -
"इन्द्र सामानिक प्रायस्त्रिंशपारिषद्यात्मरक्षलोकपालानीकप्रकीर्णकाभियोग्य किल्विषिकाश्चैकशः॥४॥"
१. इन्द्र - स्वामी, अधिपति, ऐश्वर्यवान् आदि इन्द्र पदवी से अभिषेक किया हुआ यह देव अपने समूह के देवों का स्वामी होता है। इनका ऐश्वर्य सर्वाधिक होता है। इनकी आज्ञा सब देवों पर चलती है। .
२. सामानिक - आयु आदि में जो इन्द्र के बराबर होते हैं। केवल इनमें इन्द्रपणा नहीं होता और देवों पर आज्ञा नहीं चलती है।
३. बायस्त्रिंश - ये देव इन्द्र के पुरोहित अथवा मंत्री तुल्य होते हैं। माता-पिता एवं गुरु . के समान पूज्य होते हैं। इनका दूसरा नाम दोगुन्दक देव हैं। ये प्रत्येक इन्द्र के तेतीस होते हैं। इसलिए इनको त्रायस्त्रिंश कहते हैं।
४. पारिषद्य - इन्द्र के मित्र के समान तथा इन्द्र के सभा के सदस्य।
५. आत्मरक्षक - जो देव हाथ में शस्त्र लेकर इन्द्र के पीछे खड़े रहते हैं। यद्यपि इन्द्र को किसी प्रकार की तकलीफ या अनिष्ट होने की संभावना नहीं है तथापि आत्मरक्षक देव अपना कर्त्तव्य पालन करने के लिए हर समय हाथ में शस्त्र लेकर खड़े रहते हैं।
६. लोकपाल - सीमा (सरहद्द) की रक्षा करने वाले देव।
७. अनीक - ‘अनीक' का अर्थ है सेना। यहाँ पर इस शब्द से सैनिक और सेनापति दोनों प्रकार के देव समझना चाहिए।
८. प्रकीर्णक - नगर निवासी, सामान्य प्रजाजन। ६. आभियोगिक - सेवा करने वाले सेवक, दास की श्रेणि के देव।
१०. किल्विषिक - अंत्यज (चाण्डाल के समान) इनका निवास विमान के बाह्य भागों में होता है।
प्रश्न - क्या चारों जाति के देवों में ये दस-दस भेद होते हैं? उत्तर - 'त्रायस्त्रिंशलोकपालवा व्यंतरज्योतिष्काः'
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