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________________ १. भवनपति देव असुरा णाग - सुवण्णा, विज्जू अग्गी य आहिया । दीवोदहि- दिसा वाया, थणिया भवणवासिणो ॥ २०६ ॥ कठिन शब्दार्थ - असुरा - असुरकुमार, णाग नागकुमार, सुवण्णा - सुवर्णकुमार, विज्जू - विद्युतकुमार, अग्गी- अग्निकुमार, दीव - द्वीपकुमार, उदहि - उदधिकुमार, वायुकुमार, थणिया - स्तनितकुमार । दिसा - दिशाकुमार, वाया भावार्थ असुरकुमार, नागकुमार, सुवर्णकुमार, विद्युतकुमार, अग्निकुमार, द्वीपकुमार, उदधिकुमार, दिशाकुमार, वायुकुमार और स्तनितकुमार, ये दस प्रकार के भवनवासी देव हैं। Jain Education International उत्तराध्ययन सूत्र - छतीसवाँ अध्ययन - - - विवेचन - ये देव प्रायः भवनों में रहते हैं। इसलिए इनको भवनवासी या भवनपति कहते हैं। इस प्रकार की व्युत्पत्ति असुरकुमारों की अपेक्षा समझनी चाहिए क्योंकि विशेष कर ये ही भवनों में रहते हैं। नागकुमार आदि देव तो आवासों में रहते हैं। भवन तो बाहर से गोल और अन्दर से चतुष्कोण होते हैं। उनके नीचे का भाग कमल की कर्णिका के आकार का होता है। शरीर परिमाण बड़े और मणि अथवा रत्नों के दीपकों से चारों दिशाओं को प्रकाशित करने वाले मंडप 'आवास' कहलाते हैं । भवनवासी देव भवनों में तथा आवासों में दोनों में रहते हैं। भवनवासी देवों के भवन और आवास कहाँ आये हुए हैं? प्रश्न ८ उत्तर भगवती सूत्र के दूसरे शतक के वें उद्देशक में तथा तेरहवें शतक के छठे उद्देशक में बतलाया गया है कि सम धरती से चालीस हजार योजन नीचे जाने पर चमरेन्द्रजी की चमरचंचा राजधानी आती है। रत्नप्रभा नरक में तेरह प्रस्तट पाथड़े और बारह अंतर (आंतरा) हैं। इनमें से ऊपर के दो आंतरे तो खाली पड़े हैं तीसरे आंतरे में असुरकुमार जाति के भवनवासी देव रहते हैं। इस प्रकार क्रमशः चौथे आंतरे में नागकुमार, पांचवें में सुवर्णकुमार यावत् बारहवें आंतरे में स्तनित कुमार भवनवासी देव रहते हैं । पुराने थोड़े वाले इस प्रकार बोलते हैं कि - बारह आंतरों में से ऊपर का पहला और बारहवाँ अन्तिम आंतरा खाली हैं। बीच के दस आंतरों में दस भवनपति देव रहते हैं। यह कहना उपरोक्त मूल पाठ से मेल नहीं खाता है । अतः आगम सम्मत्त नहीं है । - - For Personal & Private Use Only - www.jainelibrary.org
SR No.004181
Book TitleUttaradhyayan Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size8 MB
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