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________________ more. ३६१ जीवाजीव विभक्ति - जलचर वर्णन 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 संतई पप्पणाइया, अपजवसिया वि य। ठिइं पडुच्च साइया, सपजवसिया वि य॥१७७॥ भावार्थ - संतति-प्रवाह की अपेक्षा वे जलचर जीव अनादि और अपर्यवसित - अनन्त भी हैं और स्थिति की अपेक्षा सादि और सपर्यवसित - सान्त भी हैं। एगा य पुव्वकोडी उ, उक्कोसेण वियाहिया। . आउठिई जलयराणं, अंतोमुहुत्तं जहणिया॥१७८॥ कठिन शब्दार्थ - पुव्वकोडी - पूर्व-करोड़ वर्ष की। भावार्थ. - जलचर जीवों की जघन्य आयु - स्थिति अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट एक पूर्व-करोड़ वर्ष की कही गई है। - विवेचन - ७० लाख ५६ हजार वर्ष को एक करोड़ से गुणा करने पर - ७०५६०००००००००० सांत नील, पांच खरब, छह अरब वर्षों का एक पूर्व होता है। पुव्वकोडिपुहत्तं तु, उक्कोसेण वियाहिया। कायठिई जलयराणं, अंतोमुहत्तं जहणिया॥१७॥ कठिन शब्दार्थ - पुव्वकोडिपुहत्तं - पृथक्त्व पूर्व करोड़ (आठ करोड़ पूर्व वर्षों जितनी उत्कृष्ट कायस्थिति समझना)। . भावार्थ - जलचर जीवों की जघन्य काय-स्थिति अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट पृथक्त्व पूर्वकरोड़ वर्ष की कही गई है। विवेचन - पुहत्तं - 'पृथक्त्व' यह पारिभाषिक शब्द है। 'पुहत्तं' शब्द की संस्कृत छाया 'पृथक्त्व' होती है। उसका हिन्दी में अर्थ अनेक होता है अर्थात् 'पृथक्त्व' बहुवाची होता है। इसका प्रत्येक अर्थ नहीं करना। 'पुहत्तं' का अनेक अर्थ करने में आगम से कहीं बाधा नहीं आती है। सामान्यतया परंपरा से 'पुहत्तं' का अर्थ २ से ६ करते हैं वह प्रायिक है। आगम के अनेक सूत्र पाठों के द्वारा 'पुहत्तं' शब्द का अर्थ दो से अनन्त तक हो सकता है। कम से कम दो समझना अधिक में प्रसंगानुसार ६ एवं उनसे कम ज्यादा का भी ग्रहण हो सकता है। अतः 'पुहत्तं' शब्द का अर्थ 'अनेक' या 'बहुत' करना उचित एवं संगत लगता है। ‘अनेक' अर्थ में शास्त्रकारों की इष्ट संख्या का ग्रहण हो जाता है। उत्कृष्ट संख्या ९ आदि निश्चित करने पर अनेक बाधाएं आती हैं। ‘अनेक' अर्थ करने पर 'अपसिद्धान्त दोष परिहरण' हो जाता है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004181
Book TitleUttaradhyayan Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size8 MB
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