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उत्तराध्ययन सूत्र - छतीसवाँ अध्ययन 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000
अणंतकालमुक्कोसं, अंतोमुहत्तं जहण्णयं। विजढम्मि सए काए, जलयराणं अंतरं॥१०॥
भावार्थ - अपनी काया को छोड़ कर पुनः प्राप्त करने का जलचर जीवों का जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त का और उत्कृष्ट अनन्तकाल का है।
विवेचन - यहां असंख्यात पुद्गल परावर्तन को अनंत काल कहा है। एएसिं वण्णओ चेव, गंधओ रस-फासओ। संठाणादेसओ वावि, विहाणाई सहस्ससो॥११॥
भावार्थ - इन जलचर जीवों के वर्ण से, गन्ध से, रस से, स्पर्श से और संस्थान की अपेक्षा से भी सहस्रश - हजारों विधान - भेद हो जाते हैं।
स्थलचर - वर्णन चउप्पया य परिसप्पा, दुविहा थलयरा भवे। चउप्पया चउव्विहा, ते मे कित्तयओ सुण॥१८२॥
कठिन शब्दार्थ - चउप्पया - चतुष्पद-चौपाये, परिसप्पा - परिसर्प, कित्तयओ - कीर्तन।
भावार्थ - स्थलचर जीव दो प्रकार के होते हैं। यथा - चतुष्पद और परिसर्प, इनमें चतुष्पद जीव चार प्रकार के हैं। अब मैं उनका कीर्तन-वर्णन करता हूँ, तुम ध्यान पूर्वक सुनो।
एगखुरा दुखुरा चेव, गंडीपया सणप्पया। हयमाइ गोणमाइ, गयमाइ सीहमाइणो॥१८३॥
कठिन शब्दार्थ - एगखुरा - एक खुर वाले, दुखुरा - दो खुर वाले, गंडीपया - गंडीपद, सणप्पया - सनखपद वाले, हयमाइ - घोड़ा आदि, गोणमाइ - गाय आदि, गयमाइ - गज आदि, सीहमाइणो - सिंह आदि।
भावार्थ - एक खुर वाले जैसे - हय आदि - घोड़ा गदहा आदि। दो खुर वाले गो आदि - गाय, बैल आदि। गंडीपद (सुनार की एरण अथवा कमल की कर्णिका के समान गोल पांव वाले जीव) जैसे - गज आदि - हाथी आदि और सनखपदा (जिनके पांवों में नख हों) जैसे सिंह, कुत्ता, बिल्ली आदि।
विवेचन - चतुष्पदों के चार एवं परिसों के दो भेद कहे हैं।
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