SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 417
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३६२ उत्तराध्ययन सूत्र - छतीसवाँ अध्ययन 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 अणंतकालमुक्कोसं, अंतोमुहत्तं जहण्णयं। विजढम्मि सए काए, जलयराणं अंतरं॥१०॥ भावार्थ - अपनी काया को छोड़ कर पुनः प्राप्त करने का जलचर जीवों का जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त का और उत्कृष्ट अनन्तकाल का है। विवेचन - यहां असंख्यात पुद्गल परावर्तन को अनंत काल कहा है। एएसिं वण्णओ चेव, गंधओ रस-फासओ। संठाणादेसओ वावि, विहाणाई सहस्ससो॥११॥ भावार्थ - इन जलचर जीवों के वर्ण से, गन्ध से, रस से, स्पर्श से और संस्थान की अपेक्षा से भी सहस्रश - हजारों विधान - भेद हो जाते हैं। स्थलचर - वर्णन चउप्पया य परिसप्पा, दुविहा थलयरा भवे। चउप्पया चउव्विहा, ते मे कित्तयओ सुण॥१८२॥ कठिन शब्दार्थ - चउप्पया - चतुष्पद-चौपाये, परिसप्पा - परिसर्प, कित्तयओ - कीर्तन। भावार्थ - स्थलचर जीव दो प्रकार के होते हैं। यथा - चतुष्पद और परिसर्प, इनमें चतुष्पद जीव चार प्रकार के हैं। अब मैं उनका कीर्तन-वर्णन करता हूँ, तुम ध्यान पूर्वक सुनो। एगखुरा दुखुरा चेव, गंडीपया सणप्पया। हयमाइ गोणमाइ, गयमाइ सीहमाइणो॥१८३॥ कठिन शब्दार्थ - एगखुरा - एक खुर वाले, दुखुरा - दो खुर वाले, गंडीपया - गंडीपद, सणप्पया - सनखपद वाले, हयमाइ - घोड़ा आदि, गोणमाइ - गाय आदि, गयमाइ - गज आदि, सीहमाइणो - सिंह आदि। भावार्थ - एक खुर वाले जैसे - हय आदि - घोड़ा गदहा आदि। दो खुर वाले गो आदि - गाय, बैल आदि। गंडीपद (सुनार की एरण अथवा कमल की कर्णिका के समान गोल पांव वाले जीव) जैसे - गज आदि - हाथी आदि और सनखपदा (जिनके पांवों में नख हों) जैसे सिंह, कुत्ता, बिल्ली आदि। विवेचन - चतुष्पदों के चार एवं परिसों के दो भेद कहे हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004181
Book TitleUttaradhyayan Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy