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जीवाजीव विभक्ति - चतुरिन्द्रिय त्रस-स्वरूप 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 अच्छिरोडए - अक्षिरोडक, विचित्ते - विचित्र, चित्तपत्तए - चित्रपत्रक, ओहिंजलिया - उपधिजलक, जलकारी - जलकारी, णियया - नीचक, तंबगाइया - ताम्रक या तम्बकायिक। ___ भावार्थ - चउरिन्द्रिय जीवों के भेद - अन्धिक, पोतिक, मक्षिका (मक्खी), मशकमच्छर, भ्रमर, कीड़ा, पतंगिया, ढिंकुण, कुंकण, कुक्कुट, सिंगरीटी, नन्दावर्त्त, बिच्छू, डोला, भृगरिटी (झिंगुर), विरली, अक्षिवेधक (आँख फोड़ा), अक्षिल, माहल, अक्षिरोड़क, विचित्र, चित्रपत्रक (रंग बिरंगी तितलियाँ), उपधिजलक, जलकारी, नीनिक - नीचक और तंबक - ताम्रक आदि इस प्रकार और भी ये चतुरिन्द्रिय जीव अनेक प्रकार के हैं वे सब लोक के एक देश में व्याप्त हैं किन्तु सर्वत्र नहीं कहे गये हैं।
विवेचन - इन नामों में से कितनेक प्रसिद्ध नाम हैं, कितनेक अप्रसिद्ध नाम हैं। संतई पप्प णाइया, अपजवसिया वि य। ठिइं पडुच्च साइया, सपजवसिया वि य॥१५१॥
भावार्थ - प्रवाह की अपेक्षा चतुरिन्द्रिय जीव अनादि और अपर्यवसित अनन्त भी हैं और स्थिति की अपेक्षा सादि और सपर्यवसित - सान्त भी हैं।
छच्चेव य मासा उ, उक्कोसेण वियाहिया। चउरिदिय आउठिई, अंतोमुहत्तं जहणिया॥१५२॥ कठिन शब्दार्थ - छच्चेव - छह, मासा - महीने की।
भावार्थ - चतुरिन्द्रिय जीवों की उत्कृष्ट आयु - स्थिति छह महीने की और जघन्य अन्तर्मुहूर्त की कही गई है।
संखिजकालमुक्कोसं, अंतोमुहत्तं जहणियं। चउरिदिय कायठिई, तं कायं तु अमुंचओ॥१५३॥
भावार्थ - उस काया को न छोड़ने वाले चतुरिन्द्रिय जीवों की उत्कृष्ट कायस्थिति संख्यात काल (संख्यात हजारों वर्ष) और जघन्य अन्तर्मुहूर्त की है। 'अणंतकालमुक्कोसं, अंतोमुहुत्तं जहण्णयं। विजढम्मि सए काए, अंतरं च वियाहियं ॥१५४॥
भावार्थ - अपनी काया को छोड़ने पर चतुरिन्द्रिय जीवों का उत्कृष्ट अन्तर, अनन्त काल का है और जघन्य अन्तर्मुहूर्त का है।
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