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. उत्तराध्ययन सूत्र - छतीसवाँ अध्ययन 000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000
भावार्थ - तेइन्द्रिय जीवों का उत्कृष्ट अन्तरकाल अनन्त काल का है और जघन्य अन्तर्मुहर्त का है।
विवेचन - यह अनंतकाल वनस्पति के अन्तर्गत निगोद की अपेक्षा समझना चाहिये। . एएसिं वण्णओ चेव, गंधओ रस-फासओ। संठाणादेसओ वावि, विहाणाइं सहस्ससो॥१४५॥
भावार्थ - इन तेइन्द्रिय जीवों के वर्ण से, गन्ध से, रस से, स्पर्श से और संस्थान की अपेक्षा से भी सहस्रश-हजारों भेद होते हैं।
चतुरिन्द्रिय स - स्वरूप चउरिंदिया उ जे जीवा, दुविहा ते पकित्तिया। पजत्तमपजत्ता, तेसिं भेए सुणेह मे॥१४६॥
भावार्थ - जो जीव चउरिन्द्रिय (शरीर, रसना, घ्राण और चक्षु इन चार इन्द्रियों वाले) हैं, वे दो प्रकार के कहे गये हैं। यथा - पर्याप्त और अपर्याप्त, अब मुझ से उनके भेद सुनो।
अंधिया पोत्तिया चेव, मच्छिया मसगा तहा। भमरे कीडपथंगे य, ढिंकुणे कुंकणे तहा॥१४७॥ . कुक्कुडे सिंगिरीडी य, णंदावत्ते य विच्छुए। डोले भिंगिरीडी य, विरिली अच्छिवेहए॥१४८॥ अच्छिले माहले अच्छि, रोडए विचित्ते चित्तपत्तए।
ओहिंजलिया जलकारी य, णियया तंबगाइया॥१४६॥ इय चरिंदिया एए, णेगहा एवमायओ। लोगेगदेसे ते सव्वे, ण सव्वत्थ वियाहिया॥१५०॥
कठिन शब्दार्थ - अंधिया - अन्धिका, पोत्तिया - पोत्तिका, मच्छिया - मक्षिकामक्खी, मसगा - मशक-मच्छर, भमरे - भ्रमर, कीड - कीट, पयंगे - पतंगे, ढिंकुणे - ढिंकुण (पिस्सू), कुंकणे - कुंकण, कुक्कुडे - कुक्कुड, सिंगरीडी - सिंगरीटी, णंदावत्ते - नन्दावर्त्त, विच्छुए - वृश्चिक, डोले - डोल, भिंगरीडी - भृगरिटी (झिंगुर या भ्रमरी), विरिली - विरली, अच्छिवेहए - अक्षिवेधक, अच्छिले - अक्षिल, माहले - माहल,
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