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________________ उत्तराध्ययन सूत्र - छतीसवाँ अध्ययन एएसं वण्णओ चेव, गंधओ रस- फासओ । संठाणादेसओ वावि, विहाणाई सहस्ससो ॥ १५५ ॥ ३८६ भावार्थ - इन चतुरिन्द्रिय जीवों के वर्ण से, गन्ध से, रस से, स्पर्श से और संस्थान की अपेक्षा से भी सहस्रश हजारों भेद होते हैं। पंचेन्द्रिय त्रस जीवों का स्वरूप - पंचिंदिया उ जे जीवा, चउव्विहा ते वियाहिया । रइया तिरिक्खा य, मणुया देवा य आहिया ॥ १५६ ॥ भावार्थ - जो जीव पंचेन्द्रिय (स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु और कान, इन पांच इन्द्रियों वाले) हैं वे चार प्रकार के कहे गये हैं । नैरयिक, तिर्यंच, मनुज मनुष्य और देव । नैरयिकों का वर्णन रइया सत्तविहा, पुढवीसु सत्तसु भवे । रयणाभा सक्कराभा, वालुयाभा य आहिया ॥ १५७ ॥ पंकाभा धूमाभा, तमा तमतमा तहा । इइ णेरड्या एए, सत्तहा परिकित्तिया ॥१५८ ॥ कठिन शब्दार्थ - णेरड्या नैरयिक, सत्तविहा - सात प्रकार के, पुढवीसु - पृथ्वियों में, सत्तसु - सात, रयणाभा रत्नप्रभा, सक्कराभा - शर्कराप्रभा, वालुयाभा - बालुकाप्रभा, पंकाभा - पंकप्रभा, धूमाभा धूमप्रभा, तमा - तमः प्रभा, तमतमा तमस्तमा प्रभा । भावार्थ - नैरयिक जीव सात प्रकार के कहे गये हैं, जो सात पृथ्वियों में होते हैं। उन सात पृथ्वियों के गोत्र इस प्रकार हैं - रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा, बालुकाप्रभा, पंकप्रभा, धूमप्रभा, तमः प्रभा और तमस्तमा प्रभा, इस प्रकार ये सात प्रकार के नैरयिक कहे गये हैं। Jain Education International - - - - विवेचन - सात नरक पृथ्वियों के नाम इस प्रकार हैं - १. रत्नप्रभा - "रत्नों की प्रभा के समान प्रभा हैं, भवनपतियों के रत्नमय भवनों की प्रभा भी है। २. शर्कराप्रभा - छोटे-छोटे चिकने पाषाण खण्डों या कंकरों की बहुलता । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004181
Book TitleUttaradhyayan Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size8 MB
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