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__ जीवाजीव विभक्ति - रूपी अजीव का निरूपण
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भावार्थ - स्पर्श रूप से परिणत हुए जो रूपी अजीव हैं, वे आठ प्रकार के कहे गये हैं, कर्कश (खुरदरा), मृदु - कोमल (सुंआला), गुरु - भारी, लघु - हलका, शीत - ठंडा, उष्णगरम, स्निग्ध (चिकना) और रूक्ष (रूखा) इस प्रकार स्पर्श रूप से परिणत हुए ये पुद्गल कहे गये हैं।
विवेचन - कर्कश - वज्र (हीरे) की तरह कठोर। मृदु - फूल की तरह कोमल। गुरु - लोहे, पारद की तरह भारी। लघु - आकडा की रुई (अर्कतूल) की तरह हलका। शीत - पानी या बर्फ की तरह ठण्डा। उष्ण - अग्नि की तरह गरम। स्निग्ध - घी और तैल की तरह चिकना। रूक्ष - राख की तरह लुखा। .
संठाणओ परिणया जे उ, पंचहा ते पकित्तिया। परिमंडला य वट्टा य, तंसा चउरंसमायया॥२२॥
कठिन शब्दार्थ - परिमंडला - परिमंडल, वट्टा - वृत्त, तंसा - त्र्यम्र, चउरसं - चतुरस्र, आयया - आयत।
भावार्थ - संस्थान रूप से परिणत हुए जो रूपी अजीव हैं, वे पांच प्रकार के कहे गये. हैं। यथा परिमंडल, वृत्त, त्र्यम्र, चतुरस्र और आयत (लम्बा) संस्थान वाले। . ..
विवेचन - अजीव के पांच संस्थान कहे गये हैं। यथा - परिमंडल - चूड़ी की तरह गोल जिसके बीच में छेद हो। वृत्त - लड्ड या झालर की तरह गोल। त्र्यम्र - सिंघाडे की तरह तीन कोने वाला। चतुरस्र - चार कोने वाला बाजोट की तरह। आयत - दण्डे की तरह लम्बा। ये अजीव के पांच संस्थान हैं। जीव के तो छह संस्थान होते हैं वे इनसे भिन्न हैं।
- वण्णओ जे भवे किण्हे, भइए से उ गंधओ। रसओ फासओ चेव, भइए संठाणओ वि य॥२३॥ कठिन शब्दार्थ - किण्हे - कृष्ण, भइए - भजना। .
भावार्थ - वर्ण की अपेक्षा जो कृष्ण - काला होता है, उसकी गन्ध की अपेक्षा भजना समझनी चाहिए और इसी प्रकार रस की अपेक्षा, स्पर्श की अपेक्षा और संस्थान की अपेक्षा भी भजना समझनी चाहिए।
विवेचन - जहाँ वर्ण है वहाँ गन्ध, रस, स्पर्श और संस्थान की भजना है अर्थात् समुच्चय रूप से कृष्ण वर्ण के पुद्गल स्कन्ध में - २ गन्ध, ५ रस, ८ स्पर्श और ५ संस्थान, . इस प्रकार २० बोलों की भजना (अपेक्षित स्थिति) समझनी चाहिए।
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