________________
• उत्तराध्ययन सूत्र - छतीसवाँ अध्ययन
विवेचन - कृष्ण - काला - काजल की तरह । नीला लाल - हिंगलु की तरह । पीत - पीला-हल्दी के समान । शुक्ल गंधओ परिणया जे उ, दुविहा ते वियाहिया ।
३५०
ece
सुभिगंध परिणामा, दुब्भिगंधा तहेव य ॥ १८ ॥
कठिन शब्दार्थ - सुब्भिगंध परिणामा - सुरभिगंध परिणाम वाले, दुब्भिगंधा - दुरभिगंध । भावार्थ गन्ध रूप से परिणत हुए जो रूपी अजीव हैं वे दो प्रकार के कहे गये हैं, सुरभिगन्ध परिणाम वाले ( सुगन्ध रूप ) और दुरभिगन्ध परिणाम वाले ( दुर्गन्ध रूप ) । विवेचन - सुरभिगन्ध - चन्दन की तरह । दुरभिगन्ध - दुर्गन्ध लहसुन, कांदे की तरह । रसओ परिणया जे उ, पंचहा ते पकित्तिया ।
तित्त-व
- कडुय - कसाया, अंबिला महुरा तहा ॥ १६ ॥
कठिन शब्दार्थ - तित्त
Jain Education International
-
-
मोर की गर्दन की तरह । लोहित सफेद-शंख की तरह ।
तीखा, कडुय - कडुआ, कसाया
आम्ल, महुरा - मधुर ।
भावार्थ रस रूप से परिणत हुए जो रूपी अजीव हैं, वे पांच प्रकार के कहे गये हैं, तीखा, कडुआ, कषैला, आम्ल (खट्टा) और मधुर (मीठा ) । विवेचन - तीखा - जैसे त्रिकटुक (सुंठ, पीपर और कालीमिर्च ) । कटुक - कडुआकडुआ तुम्बा, रोहिणी की कडवी छाल । कसाया कषैला - आंवला, कच्चा आम कविठ । खट्टा - इमली आदि । मधुर मीठा गुड़, शक्कर आदि की तरह । देश विशेष की अपेक्षा इन रसों के उदाहरणों में फरक भी हो जाता हैं। जैसे कि - आयुर्वेद में काली मिर्च आदि को कटु तथा नीम आदि रस को तीखा कहा है।
आम्ल
फासओ परिणया जे उ, अट्ठहा ते पकित्तिया । कक्खडा मउया चेव, गुरुया लहुया तहा ॥२०॥ सीया उन्हाय णिद्धा य, तहा लुक्खा य आहिया । इय फास-परिणया एए, पुग्गला समुदाहिया ॥ २१ ॥ कठिन शब्दार्थ - कक्खडा - कर्कश, मउया मृदु, गुरुया - गुरु, लहुया - लघु, सीया - शीत, उण्हा उष्ण, णिद्धा - स्निग्ध, लुक्खा - रूक्ष, फास-परिणया - स्पर्श रूप से परिणत, पुग्गला - पुद्गल, समुदाहिया - कहे गये हैं ।
-
For Personal & Private Use Only
-
कषैला, अंबिला -
www.jainelibrary.org