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________________ ३४६ उत्तराध्ययन सूत्र - छतीसवाँ अध्ययन COOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOO धम्माधम्मे य दो चेव, लोगमित्ता वियाहिया। लोगालोगे य आगासे, समए समयखेत्तिए॥७॥ कठिन शब्दार्थ - लोगमित्ता - लोक-प्रमाण, समयखेत्तिए - समयक्षेत्र, लोगालोगे - लोकालोक। भावार्थ - धर्मास्तिकाय और अधर्मास्तिकाय ये दोनों लोक-परिमाण कहे गये हैं। आकाशास्तिकाय लोकालोक (लोक और अलोक) परिमाण है और समय-कालद्रव्य, समयक्षेत्र (ढाई द्वीप) परिमाण है। विवेचन - जम्बूद्वीप, धातकीखण्डद्वीप और पुष्करवरद्वीप का आधा भाग, इन को अढ़ाई द्वीप कहते हैं। जम्बूद्वीप को चारों तरफ घेरे हुए लवण समुद्र है। धातकीखण्ड को चारों तरफ से घेरा हुआ कालोदधि समुद्र है। इस प्रकार दो समुद्र और अढ़ाई द्वीप में समय की प्रवृत्ति होती है इसलिए इसे 'समय क्षेत्र' कहते हैं। पुष्करवरद्वीप १६ लाख योज़न का लम्बा और चौड़ा है। उसके ठीक बीचोंबीच में एक पर्वत है, जिसको मानुष्योत्तर पर्वत कहते हैं। वह चारों तरफ घिरा हुआ है। उससे पुष्करवर द्वीप के दो विभाग हो गये हैं। इस प्रकार अढ़ाई द्वीप हो गये हैं। वहीं तक मनुष्य है। मानुष्योत्तर पर्वत के आगे मनुष्य नहीं है। इसलिए दो समुद्र और अढाई द्वीप को मनुष्य क्षेत्र भी कहते हैं। इसके आगे न समय है, न मनुष्य है। धम्माधम्मागासा, तिण्णि वि एए अणाइया। अपजवसिया चेव, सव्वद्धं तु वियाहिया॥८॥ कठिन शब्दार्थ - धम्माधम्मागासा - धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय और आकाशास्तिकाय, अणाइया - अनादि, अपज्जवसिया - अपर्यवसित, सव्वद्धं - सर्वकाल में (स्थायी-नित्य)। भावार्थ - धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय और आकाशास्तिकाय ये तीनों अनादि और अपर्यवसित - अनन्त हैं और सब काल में रहने वाले (शाश्वत) कहे गये हैं (काल की अपेक्षा ये तीनों अनादि अनन्त हैं)। विवेचन - जिसकी आदि (प्रारम्भ) नहीं, उसे अनादि कहते हैं और जिनका कभी अन्त (समाप्ति) नहीं, उन्हें अनन्त कहते हैं। समए वि संतई पप्प, एवमेव वियाहिए। आएसं पप्प साइए, सपजवसिए वि य॥६॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004181
Book TitleUttaradhyayan Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size8 MB
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