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________________ अणगार मग्गगइंणामं पणतीसइमं अज्झयणं अनगार मार्गगति नामक पैंतीसवां अध्ययन ___ प्रस्तुत अध्ययन की २१ गाथाओं में गृहत्यागी श्रमण-अनगार के आचार का विशद वर्णन करते हुए अध्यात्म मार्ग में तीव्रता से गति-प्रगति करने की प्रेरणा की गई है। इस अध्ययन की प्रथम गाथा इस प्रकार है - . अनगार मार्ग के आचरण का फल सुणेह मे एगग्गमणा, मग्गं बुद्धेहिं देसियं। .. जमायरंतो भिक्खू, दुक्खाणंतकरे भवे॥१॥ कठिन शब्दार्थ - एगग्गमणा - एकाग्रचित्त होकर, मग्गं - मार्ग को, बुद्धेहिं - बुद्धोंतीर्थकरों के द्वारा, देसियं - उपदिष्ट, जं - जिसका, आयरंतो - आचरण करता हुआ, दुक्खाणं - दुःखों का, अंतकरे - अन्त करने वाला, भवे - होता है। ___ भावार्थ - सर्वज्ञ भगवान् द्वारा देशित - कहे हुए मार्ग को मुझ से एकाग्र चित्त हो कर सुनो, जिसका आचरण करता हुआ भिक्षु-साधु दुःखों का अन्त करने वाला होता है। विवेचन - इस अध्ययन का नाम 'अनगार मार्ग गति' है। इस में 'अनगार' शब्द की टीका करते हुए लिखा है कि - अनगार शब्द को जानने के लिए पहले ‘अगार' शब्द को जानना आवश्यक है। ___'अगैर्द्धमदषदादिभिर्निर्वृत्तमगारम(अगारं-गृहं) अगारं द्विविधंद्रव्यभावभेदात्। द्रव्यागारं पूर्वोत्तम, भावागारं पुनः अगैः विपाक कालेऽपि जीवविपाकितया शरीर पुद्गलादिषु बहिः प्रवृत्तिरहितैः अनन्तानुबंधादिभिर्निवृत्तं कषायमोहनीयम्।' अर्थात् - चूना, ईंट, पत्थर, लकड़ी आदि से बनाया हुआ घर द्रव्य अगार कहलाता है। अनन्तानुबंधी आदि कषाय मोहनीय को भाव अगार कहते हैं। जिसने द्रव्य अगार (घर) और भाव अगार दोनों को छोड़ दिया है और दोनों की लालसा का भी त्याग कर दिया है, उसे अनगार कहते हैं। मुनिवृत्ति अंगीकार करने के बाद भी घरों की Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004181
Book TitleUttaradhyayan Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size8 MB
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